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शुक्रवार, 22 सितंबर 2023

भूमिका : मैं मंज़िल का पथिक अकेला

सुरेश जैन के कविता संकलन 

"मैं मंज़िल का पथिक अकेला" की 

भूमिका

(एक जादूगर जिसने उगाया सूर्य का पौधा)

             

 "लगता है 

 सूर्य एक दिन धरती पर उतर कर 

 अपना पौधा उगाएगा 

 फिर धीरे-धीरे एक दिन 

 यह पौधा पेड़ बन जाएगा 

 और उस पेड़ पर उग आएँगे

 अनेक सूर्य 

 जिनसे प्रकाशमय हो उठेगा 

 सारा ब्रह्मांड"

 

‘कविराज’ सुरेश जैन का कविकर्म अपने खास अंदाज में सूर्य के इसी पौधे को पालने-पोसने की साधना है। कविता सूर्य का पौधा ही तो है, जिस पर आशा और आनंद के फूल और फल लगते हैं। कविगण अपनी-अपनी रुचि के फूल-फल इस पौधे से लेकर सहृदय आस्वादकों को बाँटने भर का काम करते हैं। कवि तो बस मध्यस्थ है, वितरक है - आनंद का। कविताएँ रची नहीं जाती, उतरती हैं- सूर्य की किरणों के रथ पर बैठकर कवि के मानस में। कवि उन्हें अपने शब्दों से सजाकर जनता को सौंप देता है। सुरेश जैन ने सूर्य के पौधे पर लगे कविता रूपी फूलों-फलों को हास-परिहास, कटाक्ष और व्यंग्य से सजा-सँवार कर अपनी निजी धज प्रदान की। लेकिन वे हास्य-व्यंग्य तक ही सीमित रहे हों, ऐसा नहीं है। उन्होंने समय-समय पर ओज का बाना भी पहना। प्रेम और शृंगार के बिना तो कविता हो ही नहीं सकती, क्योंकि कविता अंततः जीवन है। और जीवन की कल्पना भला प्रेम और शृंगार के बिना पूरी होती है क्या! अर्थात सुरेश जैन संक्षेप में समस्त जीवन के कवि हैं। 

सुरेश जैन एक सदा प्रसन्न रहने वाले हँसमुख, मृदुभाषी, मिलनसार और जीवंत सामाजिक जीव थे। यकीन नहीं होता कि वे अब हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन इस सच को नकारा नहीं जा सकता कि पिछले कुछ वर्षों में हैदराबाद की हमारी हिंदी साहित्यिक बिरादरी के मेरे कई अतिप्रिय कविमित्र असमय विदा कहकर इस लोक की यात्रा को अधूरी छोड़ जाने किस परम लोक की यात्रा पर अचानक अकेले-अकले निकल गए। सुरेश जैन भी इसी तरह चले गए; कहते-कहते कि मैं मंज़िल को चला अकेला। वह मंज़िल ही ऐसी है - सबको साथ लेकर चलने वाले भी उसकी ओर तो अकेले ही जाते हैं। और अकेला कर जाते हैं सहसा राह में छूट गए संगी-साथियों और सहयात्रियों को। उनकी स्मृतियाँ ही रह जाती हैं, बाद में साथ निभाने को। ‘कविराज’ की ये स्मृतियाँ उनकी रचनाओं के रूप में यत्र-तत्र कागजों पर अंकित हैं। यह संकलनउन्हें ही समेटने-सहेजने का विनम्र प्रयास है।

इस संकलन की कविताएँ सुरेश जैन के कवि-मन की संवेदनशीलता का सच्चा पता हैं। एक हास्य-व्यंग्य रचने वाले सफल कवि के रूप में वे अपने समसामयिक समाज, परिवेश और घटनाचक्र से असंतुष्ट और क्षुब्ध थे। इस असंतोष और क्षोभ को व्यक्त करने के लिए ही उन्होंने अपनी कविता के सहारे सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवेश की विडंबनाओं और विसंगतियों को इस तरह अभिव्यक्त किया कि कहीं हास्य, कहीं रुदन और कहीं कारुणिक व्यंग्य के अलग-अलग रंग पाठक-श्रोता की चेतना को अनुरंजित करते चलते हैं। वे आधुनिक मनुष्य के दोगले आचरण पर बार-बार चोट करते हैं, सामाजिक-धार्मिक पाखंड पर से हँसते-हँसते पर्दा उठाते हैं और मौका मिलते ही राजनीति के विद्रूप को नंगा करने में भी नहीं चूकते। सहज विनोद और हास-परिहास के प्रसंग भी उन्हें अति प्रिय हैं। इनके सहारे वे पाठकों को गुदगुदाते हैं। प्रस्तुत संकलन उनकी कविताओं के इन सभी रंगों से आपको परिचित कराएगा और आप उनके काव्यात्मक सम्मोहन में बंधे बिना न रह सकेंगे; यह मेरा दावा है। 

अंततः स्वयं सुरेश जैन ‘कविराज’ के अपने शब्दों में बस इतना कि - 

"मेरे हाथों में जादू है जी 

मैं कुछ भी बना सकता हूँ!"


शुभकामनाओं सहित 

#ऋषभदेव_शर्मा 


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मैं मंज़िल का पथिक अकेला (सुरेश जैन की प्रतिनिधि कविताओं का संकलन)/  संपादक- प्रवीण प्रणव/ 2023/ प्रकाशक- कादंबिनी क्लब, हैदराबाद/ पृष्ठ 126/ ₹150.

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