फ़ॉलोअर

रविवार, 19 अप्रैल 2020

(रामायण संदर्शन_संपादकीय) परमात्मा का प्राकट्य


संपादकीय
परमात्मा का प्राकट्य

प्रिय पाठको!
आज सारा विश्व एक नई और विचित्र महामारी की चपेट में आया हुआ है। कोविड-19 या कोरोना नाम के विषाणु से फैलने वाली इस महामारी की मनुष्य जाति के पास न तो अभी तक कोई कारगर औषधि है और न ही कोई रोकथाम कर सकने वाली वैक्सीन ही खोजी जा सकी है। ऐसी स्थिति में मनुष्य जाति अपने आप को असहाय और किंकर्तव्यविमूढ़ महसूस कर रही है। इस वैश्विक संकट से अपने आप को और अपने समाज को बचाने के लिए  एकांत सेवन और सामाजिक दूरी के नए नियमों का पालन करने की सलाह दी जा रही है। 

इसमें संदेह नहीं कि मानव मेधा आज नहीं तो कल इस महामारी का कोई न कोई समाधान अवश्य खोज लेगी। लेकिन इस समय की वास्तविकता यह है कि अतिशय महाबली राष्ट्रों से लेकर अत्यंत साधारण व्यक्ति तक सभी अपने आप को एक ऐसे प्रकृति प्रदत्त दुष्चक्र में फँसा हुआ अनुभव कर रहे हैं, जिससे निकलने में तमाम तरह की भौतिक कोशिशों के बावजूद सफलता नहीं मिल पा रही है। यदि यह कहा जाए कि कोरोना विषाणु ने भौतिक हानि की तुलना में वर्तमान पीढ़ी के मनुष्य की मानसिक और आत्मिक क्षति अधिक की है, तो शायद गलत न होगा। महामारी और मृत्यु के समक्ष अपनी तुच्छता और भंगुरता के बोध ने मनुष्यों के मानसिक बल और आत्म शक्ति को कमजोर बनाया है। इसका परिणाम एक ऐसी नकारात्मकता के रूप में सामने आ रहा है, जहाँ मनुष्य और मनुष्य के बीच एक नई तरह की संशय पूर्ण स्थिति और अवांछित छुआछूत जन्म ले रही है। यही नहीं, तमाम तरह की तार्किकताओं और वैज्ञानिक समझदारियों को अंगूठा दिखाते हुए, इस विषाणु के कारण नई तरह के अंधविश्वास और घृणा के भाव भी समाज के बीच उभर रहे हैं।

इस तमाम नकारात्मकता के निवारण और सकारात्मकता की पुनर्रचना के लिए ज्ञान, कर्म और इच्छा के समन्वय की बड़ी आवश्यकता है। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए मनुष्य को अपने आत्मबल को जगाना होगा। आत्मबल का यह जागरण कई प्रकार संभव है, जिनमें एक मार्ग भक्ति का भी है।  अनासक्त भाव से कर्म करते हुए, लोक कल्याण की भावना के साथ जीवन यापन करते हुए यदि हम अपने आराध्य के प्रति एकनिष्ठ विश्वास रखेंगे, तो अवश्य ही हमारे भीतर आत्मबल के रूप में स्वयं परमात्मा प्रकट होंगे।  

परमात्मा का प्राकट्य ऐसे हर क्षण में होता है, जब हम अपने आप को असहाय, निरीह और निरूपाय  पाते है। ऐसे हर क्षण नें परमात्मा नई संभावनाओं के रूप में अवतरित होते हैं। इस जगत का इतिहास साक्षी है कि जब जब नकारात्मकता का वैश्विक प्रसार हुआ है, तब तब परमात्मा ने किसी न किसी रूप में सकारात्मकता का अवतार धारण किया है। भगवान राम का प्राकट्य भी मनुष्य के भीतर आत्मबल और सकारात्मकता  के ही उदय होने का प्रतीकात्मक आख्यान है। भगवान राम के प्राकट्य के लिए प्रकृति की समस्त शक्तियाँ देवताओं के रूप में प्रजापति ब्रह्मा के नेतृत्व में जो प्रार्थना करती हैं, वह वास्तव में लोक रक्षण के निमित्त आत्मबल के जागरण की साधना ही तो है! 

संत तुलसीदास ने रामचरितमानस में इस प्रार्थना अथवा स्तुति में स्वयं परब्रह्म स्वरूप परम सत्ता का गुणगान करते हुए उन्हें जन सुखदाता, प्रणतपाल, समस्त शक्तियों के स्वामी, अविनाशी, सब घट वासी, व्यापक और परमानंद  बताते हुए यह कहा है कि वही सृष्टि के रचनाकार हैं और उन्हें सदा इस सृष्टि की चिंता है। इसी आत्मविश्वास के बल पर हम आज भी नकारात्मकता से के विरुद्ध सकारात्मक शक्तियों का जागरण कर सकते हैं क्योंकि असत, अंधकार और मृत्यु अंतिम सत्य नहीं हैं।  परम सत्य तो सत, प्रकाश और अमरत्व हैं तथा हम उसी अमृत की संतानें हैं। 

तो आइए, इसी आत्मविश्वास को लेकर हम भी आज के इस संकटकाल में अपने भीतर छिपे हुए राम रूपी अमरत्व के उदय के शुभ संकल्प के साथ अपने आराध्य की अभ्यर्थना करें! शुभमस्तु!
  • संपादक

जय जय सुरनायक!

जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता,
गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता,
पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोइ,
जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोइ,

जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा,
अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा,
जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगत मोह मुनिबृंदा,
निसि बासर ध्यावहिं गुनगन गावहिं जयति सच्चिदानंदा

जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई संग सहाय न दूजा,
सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा,
जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा,
मन बच क्रम बानी छाङि सयानी सरन सकल सूरजूथा,

सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहिं जाना,
जेहिं दीन पिआरे बेद पुकारे द्रवहु सो श्रीभगवउाना,
भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुखपुंजा,
मुनि सिध्द सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा,

जानि सभय सुरभूमि सुनि, बचन समेत सनेह,
गगनगिरा गंभीर भइ, हरनि सोक संदेह,
 (रामचरितमानस, बालकांड)

5 टिप्‍पणियां:

Dr Ramniwas Sahu ने कहा…

शुभ उदय।आपके संपादकीय की आज प्रतीक्षा कर ही रहा था रामायण पर।बहुत अच्छा ।सारे सभ्यवनागरिक पढ़कर संतुष्ट होंगे ।सबकी अनुभूति अपकी कलम से निश्रीत हो गई।अभि नंदन।

meenu kaushik ने कहा…

बहुत ही सुंदर और शुभ संकल्प की प्रेरणा भैया जी।
हृदय से आभार🌹🙏🙏🙏

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

आभारी हूँ।

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

प्रसन्न रहें!

Unknown ने कहा…

सही हैं हम आत्मबल के द्वारा ही नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर बढ़ सकते हैं।🙏🙏