हर कविता त्योहार है
डॉ. एन. लक्ष्मी लंबे समय से हिंदी भाषा और साहित्य के अध्ययन-अध्यापन से जुड़ी हैं तथा अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में सेवारत हैं। अपनी इस प्रथम काव्यकृति के माध्यम से वे एक संभावनाशील तमिलभाषी हिंदी कवयित्री के रूप में साहित्य के सुधी पाठकों के समक्ष उपस्थित हो रही हैं। मुख्यभूमि के पार हिंदी और उसकी सर्जनात्मकता के इस प्रसार का हिंदी जगत खुले मन से स्वागत करेगा।
कवयित्री एन. लक्ष्मी का रचना-लोक उतना ही वैविध्यपूर्ण है जितना किसी भी भाषा-अध्यापक का होता है। वे कई भाषाएँ जानती-समझती हैं, लेकिन उन्होंने अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम हिंदी को बनाया है क्योंकि उनके लिए हिंदी भारत के राष्ट्रीय और सांस्कृतिक मूल्यों को वहन करने वाली ही नहीं, उन्हें एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा है। बेशक, लक्ष्मी के इस संग्रह में उनकी अभ्यास कोटि से लेकर परिमार्जित कोटि तक की कविताएँ शामिल हैं; लेकिन सर्वत्र उनकी मूल चिंता राष्ट्रीय और मानवीय प्रश्नों से जुड़ी हुई है। उनके लिए हर कविता ऐसा त्योहार है जो मनुष्य को प्रमुदित-प्रफुल्लित होने का अवसर प्रदान करता है। संभवतः यही कारण है कि उनकी कविताएँ सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर हैं। दरअसल अपने व्यक्तित्व और जीवन के स्तर पर लक्ष्मी जिस सकारात्मकता से लबरेज दिखाई देती हैं, उसे ही वे अपनी कविता में भी बिंबित और प्रक्षेपित करती हैं।
लक्ष्मी की कुछ कविताओं में कथात्मकता, नाटकीयता, संवादात्मकता तो कुछ में चित्रात्मकता और आत्मालाप की उपलब्धता इस बात का विश्वास दिलाती है कि इस कवयित्री में भाषा-शैली के बहुविध प्रयोग की क्षमता निहित है। शहीदों की कहानी, बूढ़े पीपल की जुबानी - में उन्होंने फैंटेसी का आकर्षक रूप रचते हुए इतिहास और वर्तमान को बखूबी आमने-सामने ला खड़ा किया है। वे नए-पुराने काव्यरूपों को भी खूब आजमाती दिखाई देती हैं। दोहों से लेकर पिरामिड तक रचने में उनकी रुचि के प्रमाण इस कविता संग्रह में मिल जाएँगे।
यद्यपि कवयित्री एन. लक्ष्मी ने विवरणात्मक इतिवृत्त रचने में काफी सफलता पाई है, लेकिन उनकी काव्य-प्रतिभा उन कविताओं में अधिक सर्जनात्मक रूप में मुखर हुई हैं जिनमें वे या तो स्त्री-प्रश्नों से जूझती हैं या स्त्री-मन के कोमल तारों को छेड़ती हैं। पहले प्रकार की रचनाओं में स्त्री के अस्तित्व और अस्मिता की खोज का संघर्ष निहित है तो दूसरे प्रकार की रचनाओं में प्रेम की विविध दशाओं के अनुभवों में खो जाने की साध छिपी है। प्रकृति, लोक और रिश्ते-नाते इन दोनों ही प्रकार की कविताओं को मार्मिकता और आकर्षण की योग्यता प्रदान करते हैं।
मुझे पूरा विश्वास है कि डॉ. एन. लक्ष्मी की इन कविताओं को हिंदी जगत में भरपूर प्यार और यश मिलेगा तथा वे निरंतर सृजनशील रहकर अपनी श्रेष्ठ कृतियों से राष्ट्रभाषा को समृद्ध करती रहेंगी।
शुभकामनाओं सहित
ऋषभदेव शर्मा
पूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष
उच्च शिक्षा और शोध संस्थान
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद
rishabhadeosharma@yahoo.com
मोबाइल : 8074742572
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