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मंगलवार, 27 जून 2017

(संपादकीय) कोमलचित कृपाल रघुराई

अशोक वाटिका में जब हनुमान पहली बार सीता के समक्ष आते हैं तो उनकी पहचान के प्रति आश्वस्त होने पर सीता जाने कब से बँधे पड़े अपने मन को उनके समक्ष खोल देती हैं. राम-लक्ष्मण की कुशलता पूछने के बाद वे इतने दिन तक अपनी उपेक्षा रूपी निष्ठुरता को राम के लिए स्वाभाविक नहीं मानतीं. उनका विश्वास है कि राम मन से कोमल और स्वभाव से कृपालु हैं. बाबा तुलसी की भक्ति दास्य भाव की है इसलिए राम के प्रति सम्मान रखने वाले उनके सब पात्र भी इसी भाव से लबालब भरे हैं. सीता की पतिभक्ति अलौकिक है इसलिए तुलसी उनसे भी यह कहलवाना नहीं भूलते कि राम सहज स्वभाव से ही अपने सेवक को सुख प्रदान करने वाले हैं. राम के जो चाहने वाले हैं, वे भले ही स्वयं को उनका सेवक कहते रहें, राम सदा उनके सम्मान और सुख का पूरा ध्यान रखते हैं और उनकी रक्षा के लिए अपने सुख की परवाह नहीं करते. इस बात को सीता जानती हैं, तथापि हनुमान उन्हें याद दिलाते हैं कि राम उनके दुख से बराबर दुखी. इतना ही नहीं वे तो यहाँ तक यकीन दिलाते है कि माँ! अपना मन छोटा मत कीजिए; राम के मन में आपके लिए दोगुना प्रेम है. भक्ति और सामाजिक जीवन दोनों दृष्टियों से यह सूत्र बहुत महत्वपूर्ण है कि राम अपने चाहने वालों को दोगुनी उत्कटता से चाहते हैं. राम को चाहने का अर्थ है अपने जीवन में उनके इस ‘कोमलचित कृपाल’ स्वरूप को चरितार्थ करना. हम यह कर सकें तो दोगुनी उत्कटता से राम हमारे जीवन में प्रकट होंगे, इसमें संदेह नही.
 27.6.2017                                                                                                                         - ऋदेश 



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