कविता के पक्ष में ऋषभदेव शर्मा और पूर्णिमा शर्मा आईएसबीएन - 9788179652596 2016 तक्षशिला प्रकाशन, 98 ए, हिंदी पार्क, दरियागंज, नई दिल्ली - 110002 376 पृष्ठ, सजिल्द 750 रुपए |
अनुक्रम
भूमिका
खंड 1
गगन मंडल में ऊँधा कूवा
1. ऐसे मन लै जोगी खेलै : गोरखनाथ
2. गोरी रत्तउ तुव धरा तूं गोरी अनुरत्त : चंदबरदायी
3. चु मन तूतिए-हिंदम : अमीर खुसरो
4. देख-देख राधा रूप अपार : विद्यापति
खंड 2
सुरसरि सम सब कहँ हित होई
1. कहत कबीर सुनो भई साधो! : कबीर
2. यह तो घर है प्रेम का : कबीर
3. हम न मरैं मरिहै संसारा : कबीर
4. खुरासान खसमाना कीआ हिंदुस्तान डराइआ : नानक
5. नयन जो देखा कँवल भा : जायसी
6. प्रेम बंध्यो संसार प्रेम परमारथ पैये : सूरदास
7. सूरदास प्रभु राधामाधव ब्रज बिहार नित नई नई : सूरदास
8. मातु-पिता जग जाइ तज्यौ : तुलसीदास
9. बैर न कर काहू सन कोई : तुलसीदास
10. रामहि केवल प्रेमु पिआरा : तुलसीदास
11. नहिं दरिद्र सम दुःख जग माहीं : तुलसीदास
12. मीराँ की हरि पीर मिटे जब वैद साँवरिया होय : मीराँ
13. यारो, यारी छोड़िए, वे रहीम अब नाहिं : रहीम
खंड 3
ज्यों नावक के तीर
1. भरे भौन में करत हैं, नैनन ही सों बात : बिहारी
2. न डरौं अरि सौं जब जाइ लरौं : गोबिंद सिंह
खंड 4
हम कौन थे, क्या हो गए हैं
1. पै धन बिदेश चलि जात : भारतेंदु
2. कवियो! उठो अब तो अहो : मैथिलीशरण गुप्त
3. कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ : बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’
खंड 5
बीती विभावरी जाग री
1. हिमाद्रि तुंग शृंग से : जयशंकर प्रसाद
2. यह विश्व कर्म रंगस्थल है : जयशंकर प्रसाद
3. नित्य नूतनता का आनंद : जयशंकर प्रसाद
4. रँग गई पग-पग धन्य धरा : निराला
5. वियोगी होगा पहला कवि : सुमित्रानंदन पंत
6. बालिका मेरी मनोरम मित्र थी : सुमित्रानंदन पंत
7. ऐसा पक्षी जिसमें हो संपूर्ण संतुलन : पंत
8. छाया सरस वसंत विपिन में : महादेवी वर्मा
9. यह महान दृश्य है, चल रहा मनुष्य है : बच्चन
10. पीड़ा में आनंद जिसे हो : बच्चन
खंड 6
कलम देश की बड़ी शक्ति है
1. होश करो, दिल्ली के देवो, होश करो : दिनकर
2. मानवों का मन गले पिघले अनल की धार है : दिनकर
3. मेरी भी आभा है इसमें : नागार्जुन
4. काश, मैं भी फूलता, मेरे भाई अनार : केदारनाथ अग्रवाल
5. भाषा की लहरों में जीवन की हलचल है : त्रिलोचन
6. मिट्टी गल जाती पर उसका विश्वास अमर हो जाता है : शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
खंड 7
भेद खोलेगी बात ही
1. लेकिन बहुत सादा सांवलापन : शमशेर
2. दुःख सबको माँजता है : अज्ञेय
3. तोड़ने होंगे ही मठ और गढ़ सब : मुक्तिबोध
4. केवल थोड़ी-सी हरकत ज़रूरी है : सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
5. जान बूझकर चीखना होगा ज़िंदा रहने के लिए : रघुवीर सहाय
6. माटी को हक दो : केदारनाथ सिंह
खंड 8
भाषा में आदमी होने की तमीज़
1. मैं कबीरदास नहीं, दासों का दास कवि हूँ : राजकमल चौधरी
2. और विपक्ष में सिर्फ कविता है : धूमिल
3. लिखने का मतलब है नरक से गुज़रना : श्रीकांत वर्मा
4. मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ : दुष्यंत कुमार
खंड 9
आपसे क्या कुछ छिपाएँ
1. यहाँ आने से पहले अपने जूते बाहर उतार कर आना : राजेश जोशी
2. शब्द को पत्थर सरीखा आजमाने का समय है : देवराज
3. इसलिए कि मेरी नाभि में कस्तूरी थी : अरुण कमल
खंड 10
‘हम’ भी मुँह में ज़बान रखते हैं
1. कुर्सी हाय हाय हाय : जगदीश सुधाकर
2. छाले हैं छालों के भीतर : अनामिका
3. मेरे शब्द सीख जाएँ असहमति में सिर हिलाना : ओमप्रकाश वाल्मीकि
4. चाहती हूँ मैं, नगाड़े की तरह बजें मेरे शब्द : निर्मला पुतुल
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