ऋषभदेव शर्मा और पूर्णिमा शर्मा/
आईएसबीएन -
9788179652596 /
2016/
तक्षशिला प्रकाशन,
98 ए, हिंदी पार्क, दरियागंज,
नई दिल्ली - 110002 /
376 पृष्ठ, सजिल्द/
750 रुपए",
पुस्तक के बारे में
कविता जीवन के सर्वाधिक निकट स्थापित वह
प्रकाशपुंज है, जिससे मनुष्य को सदा संचेतना मिलती रही है. युग जीवन को अपने में
समेटना, समय के सत्य को पकड़ना, मनुष्य को बिना किसी लाग-लपेट के संबोधित करना,
प्रकाश और उष्णता की संघर्षशील संस्कृति की स्थापना करना और प्रत्येक व्यक्ति के
भीतर दायित्व बोध का विकास करके क्रांति की भूमिका तैयार करना – कविता का
लोकतांत्रिक दायित्व है. जिस युग की कविता इससे अलग भूमिका स्वीकार कर लेती है, वह
युग अव्यवस्था से भर उठता है. ठीक है कि मनोरंजन भी कवि का धर्म है लेकिन गौण.
हिंदी कविता को विश्लेषणात्मक दृष्टि से देखने पर
यह तथ्य उभर कर सामने आता है कि अनेक उतार चढ़ावों से भरी होने के बावजूद वह हर काल
में मानवता की सुरक्षा चट्टान बनकर जीवन मूल्यों की रक्षा करती रही है. ‘’कविता के
पक्ष में’’ शीर्षक इस पुस्तक का केंद्रीय विचार हिंदी कविता के इसी जीवन केंद्रित,
जन पक्षधर और मूल्यनिष्ठ स्वरूप की पहचान कराना है. तमाम तरह की मृत्यु-घोषणाओं के
बावजूद आज भी कविता मनुष्यता की मातृभाषा है और उसके सौंदर्यबोध को परिष्कृत तथा
मनोवृत्तियों को उदात्त बनाने का सामर्थ्य रखती है.
एक हजार बरसों से अधिक के हिंदी कविता के इतिहास
में ऐसा कभी नहीं हुआ कि उसकी प्राणधारा सूख गई हो. लोक से लगाव ने कभी उसे पूरी
तरह निष्प्राण नहीं होने दिया – कभी उसका पाट ग्रीष्म ऋतु की नदी की तरह सिकुड़ भले
ही गया हो. उसने कभी अपने चरम लक्ष्य अर्थात मनुष्य को दृष्टि से ओझल नहीं ही होने
दिया. निश्चय ही हिंदी कविता की कालजयी प्रासंगिकता के पक्ष में यही सबसे बड़ा तर्क है. इस पुस्तक
में बड़ी सहजता से और बिना किसी वाद-विवाद के, हिंदी कविता की इस केंद्रीय शक्ति को
उभारा गया है.
दस खंडों में सुनियोजित रूप से प्रस्तुत यह
पुस्तक आदि काल से लेकर आज तक की हिंदी कविता के ऊर्जा-बिंदुओं की पहचान सरल-सुबोध
भाषा-शैली में कराती चलती है. पहले खंड में नाथ-सिद्ध साहित्य, रासो साहित्य,
लौकिक साहित्य और भक्ति व शृंगार की पूर्वापर परंपरा की कड़ियों को जोड़ने का प्रयास
किया गया है. आगे की तमाम वस्तुगत और शिल्पगत प्रवृत्तियां इस काल में बीज रूप में
दीख जाती हैं जिनके विकास को दूसरे और तीसरे खंडों में क्रमशः भक्ति और रीतिकालीन
कवियों के संदर्भ में विवेचित किया गया है.
पुस्तक के चौथे खंड में आधुनिक काल के भारतेंदु
और द्विवेदी युग की कविता की नवजागरण जनित प्रवृत्तियों को तथा पांचवें खंड में
छायावाद से नाभिनालबद्ध राष्ट्रीय पहचान की खोज की गांधीयुगीन प्रवृत्तियों को रेखांकित
करने के लिए इन युगों के प्रतिनिधि कवियों के प्रदेय की पड़ताल की गई है. इसके बाद
हिंदी कविता ने प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नई कविता, समकालीन कविता, जनपक्षीय कविता
और विमर्शीय कविता के जो नए नए अवतार ग्रहण किए उनके सरोकारों की समीक्षा छठे से
दसवें खंडों तक की गई है.
इसमें संदेह नहीं कि पाठकों को हिंदी कविता के
विकास के विविध चरणों और प्रमुख कवियों के योगदान को समझने के लिए ‘’कविता के पक्ष
में’’ बेहद पठनीय और ज़रूरी किताब प्रतीत होगी
क्योंकि इसमें वादमुक्त चिंतन, वस्तुनिष्ठ विवेचन और काव्यभाषा के माध्यम
से कविता के मर्म तक पहुँचने का सफल प्रयास निहित है.
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