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गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

जनसंघर्ष की पक्षधर कहानियाँ




भारतीय साहित्य में प्रगतिशील आंदोलन ने साहित्य की कसौटी को बदलने का काम किया तथा सामान्य जन के संघर्ष को विशिष्ट अभिजन की गाथाओं से अधिक महत्व दिया. खास तौर पर कहानीकारों ने इस दिशा में विशिष्ट भूमिका निभाई और साहित्य को आम आदमी के सुख-दुःख के साथ जोड़ा बाहर नहीं बल्कि उसकी मुक्ति का माध्यम भी बनाया. ओड़िया कहानी भी इसका अपवाद नहीं है. ओड़िया कहानीकारों ने आरंभ से ही उत्कल जनजीवन के प्रामाणिक चित्रण पर बल दिया. और किसान-मजदूर को अपनी विषय वस्तु के केंद्र में रखा. 1936 में प्रगतिशील लेखक संघ, ओड़िशा की स्थापना के बाद इसे एक सुनिश्चित जुझारू चरित्र प्राप्त हुआ. प्रांतीयता और भारतीयता के बीच बड़ी समझदारी के साथ प्रगतिशील ओड़िया कहानीकारों ने सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और राजनैतिक सरोकारों का जनपक्षीय स्वरूप अपनी कहानियों के माध्यम से खड़ा किया.

कथ्य और शिल्प की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध और वैविध्यपूर्ण कहानी संसार में से चुनकर डॉ. अरुण होता ने 25 प्रतिनिधि रचनाओं का हिंदी अनुवाद अपनी कृति ‘ओड़िया की प्रगतिशील कहानियाँ’ (2013) के माध्यम से प्रस्तुत किया है. डॉ. अरुण होता (1965) पूर्वोत्तर भारत में हिंदी अध्ययन-अध्यापन-अनुसंधान से जुड़े हुए चर्चित लेखक व समीक्षक है. वे अपने अनुवादों और समीक्षात्मक आलेखों के लिए हिंदी जगत में सुपरिचित हैं. यह संग्रह उन्होंने अत्यंत श्रमपूर्वक तथा प्रतिबद्ध दृष्टि से अनूदित और संपादित किया है. कहानियों के आरंभ में एक संक्षिप्त आलेख में उन्होंने प्रगतिशील ओड़िया कहानी की संमृद्ध परंपरा का सुविचारित आकलन प्रस्तुत किया है. इन कहानियों के बारे में यह कहना सच को दुहराना ही है कि इनमें शोषण के विरुद्ध बहुआयामी संघर्ष को सर्वहारा के प्रति सहानुभूति के साथ इस तरह चित्रित किया गया है कि एक तरह तो शोषक शक्तियों का जन विरोधी चरित्र नंगा होता है तथा दूसरी ओर कहानीकारों की जनपक्षधरता उभरकर सामने आती है. 

इसमें संदेह नहीं कि अरुण होता द्वारा प्रस्तुत यह अनुवाद आधुनिक भारतीय साहित्य के समशील चरित्र को ही रेखांकित करता है. 

· ओड़िया की प्रगतिशील कहानियाँ/ संकलन एवं अनुवाद - अरुण होता/ 2013/ क्लासिक पब्लिशिंग कंपनी, 28 शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, कर्मपुरा, नई दिल्ली – 110 015/ पृष्ठ – 240/ मूल्य – रु. 600







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