२०१०-११ हिंदी-उर्दू के कई महान कवियों का शताब्दी वर्ष है. देश भर में आयोजन चल रहे हैं. अपना हैदराबाद भी कुछ पीछे नहीं है. छोटी-बड़ी चर्चाएँ, संगोष्ठियाँ शहर के अलग-अलग कोनों में चल रही हैं. अज्ञेय पर पिछले दिनों अच्छी चर्चा हुई - जब विश्वविद्यालय विशेष के पूर्व और वर्त्तमान अध्यक्ष सरस्वती वंदना और दीप प्रज्वलन को ब्राह्मणवादी कह कर ऐसे भिड़े कि .... खैर... जाने दीजेये.
फिलहाल तो बात ३० दिसंबर को आन्ध्र प्रदेश हिंदी अकादमी में शमशेर बहादुर सिंह पर आयोजित विशेष व्याख्यान की चल रही है. व्याख्यान किया अपने डॉ.बालकृष्ण शर्मा रोहिताश्व जी ने उन्होंने काफी विस्तार से अज्ञेय, नागार्जुन और शमशेर की अलग-अलग विशेषताएं बताते हुए तीनों को पिछली शताब्दी के मौलिक साहित्यकार साबित किया. रोहिताश्व का ख़ास जोर इस बात पर था कि शमशेर ऐसे विरले कवि हैं जिनकी कविताओं में देशी-विदेशी काव्य शास्त्र, काव्यान्दोलन, कलाआन्दोलन, स्थापत्य, नृत्य शास्त्र और विचारधाराएँ एक साथ प्रतिफलित होती दिखाई देती हैं.