हैदराबाद, 23 जुलाई 2009
वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग तथा केंद्रीय बारानी कृषि अनुसंधान संस्थान (क्रीडा) के संयुक्त तत्वावधान में क्रीडा के सम्मेलन कक्ष में आयोजित द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन 'हिंदी में वैज्ञानिक लेखन की परंपरा' विषय पर प्रो. ऋषभदेव शर्मा का व्याख्यान आयोजित किया गया। अपने संबोधन में डॉ. शर्मा ने बताया कि हिंदी में वैज्ञानिक लेखन की शुरुआत दो शताब्दी पूर्व उस समय हो चुकी थी जब 1810 ई. में लल्लू लाल द्वारा संपादित 3500 तकनीकी हिंदी शब्दों की सूची फ़ारसी व अंग्रेज़ी प्रतिरूपों के साथ प्रकाश में आई थी। उन्होंने स्कूल बुक सोसाइटी (आगरा), साइन्टिफिक सोसाइटी (अलीगढ़), वाद-विवाद क्लब (बनारस), काशी नागरी प्रचारिणी सभा, गुरुकुल कांगड़ी और विज्ञान परिषद (इलाहाबाद) के योगदान की चर्चा करते हुए वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली निर्माण के मानदंड निर्धारित करने में डॉ. रघुवीर की ऐतिहासिक भूमिका का भी जिक्र किया।
प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने प्रस्तावित किया कि भारतीय भाषाओं में वैज्ञानिक लेखन को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से शब्द निर्माण संबंधी अनुप्रयुक्त संस्कृत का आधारभूत पाठ्यक्रम आरंभ किया जाए। उन्होंने यह भी ध्यान दिलाया कि हिंदी की पहली वैज्ञानिक पत्रिका 'विज्ञान' 1914 से निरंतर प्रकाशित हो रही है और उसका शताब्दी वर्ष निकट है, अतः इस पत्रिका के शताब्दी वर्ष के बहाने पूरे देश में अपनी भाषाओं में वैज्ञानिक लेखन का आंदोलन चलाया जा सकता है।
संगोष्ठी में विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों से जुड़े वैज्ञानिकों, अधिकारियों और राजभाषाकर्मियों ने भाग लिया। आरंभ में क्रीडा के राजभाषा अधिकारी डॉ. संतराम यादव ने अतिथि वक्ता का परिचय दिया। आयोग के सहायक निदेशक डॉ. धर्मेंद्र कुमार ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
8 टिप्पणियां:
विज्ञान की शब्दावली के लिए विद्वान इतना कार्य कर रहे हैं परंतु इस का उपयोग दिनदैन के कार्यों में लाया जाय तो इसकी सार्थकता होगी।
विज्ञान लेखन सरल व रोचक होना चाहिये
आपके ब्लाग पर पहली बार आया हूं, अच्छा लगा। बधाई।
वैज्ञानिक लेखन काफी दिनों से चल रहा है .. पर उसे गंभीरता से लेना होगा .. शुभकामनाएं !!
हिन्दी और विज्ञान का इतना पुराना और सशक्त रहा है बहुत कम लोगों को पता है। लेख के लिये साधुवाद। यदि इस विषय पर और विस्तार से प्रकाश डाल सके तो अत्युत्तम होगा।
ऋषभ जी,
आप वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग के लोगों से मिलते रहते होंगे और सतत सम्पर्क में रहते होंगे। कृपया उनको समझाइये कि हिन्दी की वैज्ञानिक शब्दावली को अबिलम्ब नेट पर डालें नहीं तो इस देरी के कारण हिन्दी का बहुत अहित हो रहा है।
यदि मुझे सीडी के रूप में यह मिल जाय तो मैं इसे नेट पर दाल सकता हूँ। यदि यह यूनिकोडित नहीं हो तो भी कोई बात नहीं - मैं इसे यूनिकोडित कर लूंगा। समुचित फार्मट में भी कर लूंगा।
शब्द निर्माण के लिये अनुप्रयुक्त संस्कृत का कार्यक्रम चलाने वाली बात भी मुझे बहुत अच्छी और बहुत उपयोगी लगी।
अनुनाद जी ,
ऋषभ उवाच पर आपकी टिप्पणियों के लिए आभारी हूँ.
हिंदी में विज्ञान लेखन की परंपरा पर विस्तार से लिखने के आपके आदेश का पालन कर सका तो सूचित करूँगा [वैसे नोट्स तो तैयार ही हैं].
आयोग के अधिकारियों के सामने मैं शब्दावली को यथाशीघ्र नेट पर उपलब्ध कराने की माँग रख चुका हूँ - कई अवसरों पर. संभवतः सरकारी गति (!) से काम चल भी रहा है.
आपके प्रस्ताव को भी मैं वहाँ तक पहुँचाने का प्रयास करूँगा.
और हाँ, संदर्भित व्याख्यान में मेरा अपना कुछ नहीं था. सारी बातें तो विशेषज्ञों ने कहीं न कहीं लिख रखी हैं. मैंने उन्हें एक क्रम दे दिया ..बस. [ सारा लोहा उन लोगों का / अपनी केवल धार!]
अनुप्रयुक्त संस्कृत के प्रशिक्षण की मेरी कल्पना को नारायण प्रसाद जी के लेखों से बड़ा बल मिला और मैंने स्थान-स्थान पर इस मुद्दे को उठाने का निश्चय कर लिया. टेक्नीकल - हिंदी समूह की भी मैं ऐसे अवसरों पर चर्चा अवश्य किया करता हूँ.
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