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शनिवार, 13 जुलाई 2019

(पुस्तक) हैदराबाद के हिंदी जगत का दस्तावेजी आकलन और संकलन

समीक्षित पुस्तक : कादंबिनी क्लब, हैदराबाद रजतोत्सव संस्मारिका/  
संपादक मंडल : डॉ. रमा द्विवेदी, मीना मुथा, अवधेश कुमार सिन्हा, डॉ. आशा मिश्र एवं प्रवीण प्रणव/
 प्रकाशक : कादंबिनी क्लब
, हैदराबाद/ संस्करण : 2019/ पृष्ठ : 140  

पुस्तक समीक्षा 

हैदराबाद के हिंदी जगत का दस्तावेजी आकलन और संकलन 

समीक्षक : ऋषभदेव शर्मा 

हैदराबाद की जलवायु साहित्य-सृजन के काफी अनुकूल है। तेलुगु, उर्दू और हिंदी तीनों की ही यहाँ अत्यंत पुष्ट साहित्यिक परंपरा रही है। स्मरणीय है कि इस शहर की स्थापना के समय से ही यहाँ दक्खिनी हिंदी के अनेक साहित्यकार हुए तथा स्वतंत्रता आंदोलन काल में महात्मा गांधी के एकादश व्रत के अनिवार्य अंग के रूप में हिंदी भाषा का व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ। यह शहर एक प्रकार से दक्षिण का द्वार है और यहाँ उत्तर भारत तथा दक्षिण भारत दोनों की भाषिक संस्कृतियाँ मिलकर अपनी इंद्रधनुषी छटा बिखेरती हैं। इसकी छाया में पल्लवित-पुष्पित अनेक साहित्यिक संस्थाएँ वर्ष भर विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में संलग्न रहती हैं। हिंदी भाषा और साहित्य की ऐसी ही चेतनाप्रवण गतिविधियों में लिप्त एक अग्रणी संस्था है कादंबिनी क्लब, हैदराबाद। इस संस्था की विधिवत स्थापना देश भर में कादंबिनी क्लबों की शृंखला की एक कड़ी के रूप में 2 जून, 1994 को इस योजना के सूत्रधार डॉ. राजेंद्र अवस्थी के नेतृत्व में हुई, जिसकी बागडोर क्लब संयोजक के रूप में डॉ.अहिल्या मिश्र को सौंपी गई। उनके मार्गदर्शन में इस संस्था ने अपनी सतत और अटूट यात्रा के पच्चीस वर्ष अभी 2019 में संपन्न किए हैं। इस अवसर पर अत्यंत गरिमापूर्ण द्विदिवसीय रजतोत्सव मनाया गया। इसके अंतर्गत समसामयिक एवं प्रासंगिक विषयों पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई, जिसमें कादंबिनी क्लब, हैदराबाद की उपलब्धियों का तटस्थ आकलन करने के अलावा आगे की यात्रा की दिशा पर भी गंभीर विचार-विमर्श हुआ। 

इस उत्सव को अविस्मरणीय बनाने के लिए रजतोत्सव संस्मारिका भी प्रकाशित की गई जिसमें एक ओर तो हैदराबाद के हिंदी जगत की उपलब्धियों का इतिवृत्त प्रस्तुत किया गया है तथा दूसरी तरफ विभिन्न विधाओं को समुन्नत करने वाले दिवंगत और वर्तमान साहित्यकारों की प्रतिनिधि रचनाओं की बानगी भी प्रस्तुत की गई है। साथ में कादंबिनी क्लब, हैदराबाद की गतिविधियों का लेखा-जोखा तो है ही। 

इस संस्मारिका को दस्तावेजी महत्व प्रदान करने में डॉ.अहिल्या मिश्र द्वारा प्रस्तुत ‘अथ हैदराबाद हिंदी कथा’ की केंद्रीय भूमिका है। यह कथा अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हास्य-व्यंग्य कवि वेणुगोपाल भट्टड की स्मृतियों पर आधारित है। वे ही इस कथा के वाचक हैं, जिसे मीना मुथा के सहयोग से लिपिबद्ध किया गया है। एक तरह से यह हैदराबाद की हिंदी गतिविधियों का वाचिक इतिहास है, जिसे लिखित रूप में पहली बार यहाँ सँजोया गया है। हैदराबाद में हिंदी साहित्य के लेखन एवं प्रकाशन के साथ विशेष रूप से कविता के उन्नायक हिंदी साहित्यकारों की जानकारी देने वाली इस कथा से यह महत्वपूर्ण सूचना भी मिलती है कि हिंदी की गतिविधियों को निज़ाम शासन के दौरान हतोत्साहित ही नहीं, प्रतिबंधित तक किया गया था; क्योंकि उसकी दृष्टि में हैदराबाद के लिए हिंदी विदेशी भाषा थी। ऐसे में 1931 में अर्जुन प्रसाद मिश्र कंटक ने ‘भाग्योदय’ मासिक निकाला। कंटक जी इस क्षेत्र के ‘अच्छी हिंदी जानने वाले प्रथम व्यक्ति’ और स्वयं कवि थे। आगे चलकर 1939 में ‘आर्यसंदेश’ का प्रकाशन आरंभ हुआ तथा 1945 में यहाँ हिंदी साहित्य सम्मेलन का अधिवेशन बुलाया गया था। इसी प्रकार की अनेक महत्वपूर्ण सूचनाएँ इस हिंदी कथा को संग्रहणीय बनाती हैं। आशा है, इस क्षेत्र के हिंदी आंदोलन और साहित्य सृजन पर शोध करने वाले विद्वान इस सामग्री का अवश्य ही लाभ उठाएँगे।

साथ ही 1994 से 2019 तक की कादंबिनी क्लब, हैदराबाद की यात्रा कथा को भी संस्था के मासिक रिकॉर्ड के आधार पर मीना मुथा ने लेखबद्ध किया है। इस अवधि में विविध कार्यक्रमों के अंतर्गत समय-समय पर जिन अनेक पुस्तकों का लोकार्पण किया गया उनके विवरण के अवलोकन से किसी भी पाठक को इस संस्था के विस्तार और गहराई का सहज बोध हो सकता है। 

इस तमाम ऐतिहासिक पीठिका के बाद एक खंड में कहानियों और लेखों को रखा गया है जिनमें अतिथि साहित्यकार मृदुला सिन्हा के अलावा बीस महत्वपूर्ण स्थानीय लेखक-लेखिकाओं की गद्य रचनाएँ शामिल हैं। एक अन्य खंड में वर्तमान काल में सृजनरत हैदराबाद के हिंदी कवियों की प्रतिनिधि कविताएँ सँजोयी गई हैं, जिनसे इस नगर की संवेदनशीलता और भावप्रवणता का जीवंत साक्ष्य प्राप्त होता है। 

इन दोनों खंडों के बीच में एक छोटा सा खंड हैदराबाद के दिवंगत कवियों की रचनाओं का भी है। ये रचनाएँ सचमुच धरोहर हैं और इनकी उपस्थिति इस संस्मारिका को सहेजकर रखने का सर्वाधिक महत्वपूर्ण आधार है। इन धरोहर रचनाकारों में डॉ. प्रतिभा गर्ग, डॉ. इंदु वशिष्ठ, शशिनारायण स्वाधीन, वीर प्रकाश लाहोटी सावन, दिवाकर पांडेय, हरनाम सिंह प्रवासी, डॉ.रोहिताश्व, दुर्गादत्त पांडेय, गायत्री शरण शर्मा, विजय विशाल, तेजराज जैन, पुरुषोत्तम प्रशांत, विश्वेश्वरराज अस्थाना, डॉ.हरिश्चंद्र विद्यार्थी, शिवकुमार गुप्ता, विभा वर्मा, डॉ.संतोष गुप्ता, हरिश्चचंद्र गुप्ता, गौतम दीवाना, डॉ.वेणुगोपाल और चंद्रमौलेश्वर प्रसाद सम्मिलित हैं। 

इस संग्रहणीय संस्मारिका के प्रकाशन हेतु संपादक मंडल तथा कादंबिनी क्लब, हैदराबाद निश्चय ही अभिनंदनीय है। ... और हाँ, दृष्टि को बाँध लेने वाले इंद्रधनुषी आवरण चित्र के लिए कवि चित्रकार नरेंद्र राय की तूलिका प्रणम्य है! 

समीक्षक : ऋषभदेव शर्मा 
मो. 8074742572