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शुक्रवार, 25 मई 2018

रामकथा आधारित एनिमेशन ‘सीता सिंग्स द ब्ल्यूज़’ : एक अध्ययन


रामकथा आधारित एनिमेशन ‘सीता सिंग्स द ब्ल्यूज़’ : एक अध्ययन

ऋषभदेव शर्मा और कुमार लव


‘रामायण’, ‘महाभारत’ और ‘बृहत्कथा’ भारतीय वाङ्मय के ऐसे आकर-ग्रंथ हैं जिनकी कथाएँ अनेक रूपों में देसी लोकसाहित्य से लेकर विदेशी साहित्य तक में फैली हुई हैं. इनमें भी विशेष रूप से अपनी सरलता, पारदर्शिता, मूल्यनिष्ठता और मानवीय पुरुषार्थ केंद्रिकता के कारण रामकथा संभवतः सर्वाधिक वैविध्य के साथ देश-विदेश के नाना भाषा समुदायों में प्रचलित मिलती है. इस मूलतः पौराणिक- ऐतिहासिक कथा का ढाँचा कुछ इतना लचीला है कि एक जगह से दूसरी जगह जाते-जाते इसका पाठ लगातार बदलता रहता है. एक काल से दूसरे काल तक जाने पर तो और भी बदलाव हो जाते हैं. देश-काल के भेद से उत्पन्न पाठ भेदों के कारण प्रायः इसे मिथक की कोटि में भी गिन लिया जाता है लेकिन विभिन्न प्रकार के पुरातात्विक, भाषिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक साक्ष्य यह प्रमाणित करते हैं कि रामकथा मूलतः ऐतिहासिक है लेकिन उसके पात्र इतने अधिक लोकाभिराम हैं कि उसमें पुरावृत्त और लोकसाहित्य जैसी परिवर्तनीयता आ गई है. सहज रूप में लोकचित्त के अत्यंत निकट होने के कारण आज भी यह कथा नए-नए अवतार धारण करके रामत्व अथवा राम संस्कृति के मूल्यों को अधुनातन पीढ़ियों को सौंपने का काम कर रही है. 


अपनी इस विश्वयात्रा में रामकथा ने यदि हजारों हजार वर्ष पहले विभिन्न लोककलाओं और माध्यमों का सहारा लिया तो क्रमशः मौखिक से लिखित साहित्य की ओर भी प्रस्थान किया. उसी समय से लिखित और मौखिक दोनों ही परंपराओं में रामकथा अनेक रूपों में मिलने लगती है. स्वयं संस्कृत में ही रामकथा के विभिन्न पात्रों के अवलोकन बिंदु से संचालित विविध पाठ मिलते हैं. यह इस कथा की लोकतांत्रिक प्रकृति ही है कि देश-दुनिना में राम संस्कृति साहित्य के अलावा बित्तिचित्रों, रेखांकनों, रंगचित्रों, मूर्तियों और स्मारकों के रूप में उपलब्ध होती है. इस लोकतांत्रिक प्रकृति के कारण ही इस कथा के मुख्य पात्रों के क्रियाकलापों पर प्रश्न उठाने की परंपरा भी आरंभ से ही चली आ रही है. कहने का आशय यह है कि रामकथा की विश्वयात्रा का एक आधार यदि इसमें निहित नैतिक मूल्य हैं तो दूसरा बड़ा आधार इसकी वह लोकतांत्रिक प्रकृति है जो इसे विभिन्न देश-काल तथा भाषा-समुदाय के अनुरूप ढल जाने देती है. यही कारण है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के वैश्विक विस्फोट के वर्तमान युग में भी यह कथा सिनेमा से लेकर सोशल मीडिया तक तथा कार्टून कथाओं से लेकर एनीमेशन फिल्मों तक के लिए सुग्राह्य और लोकप्रिय कथा है. इसके मोटिफ का इस्तेमाल करते हुए तो जाने कितनी कथाएँ विविध माध्यमों से रची जा चुकी हैं और निरंतर रची जा रही हैं, लेकिन एनिमेशन फिल्म जैसा माध्यम भी इससे अछूता नहीं है. एक ओर हनुमान जैसे पात्रों पर आधारित एनिमेशन विभिन्न टीवी चैनलों पर लोकप्रिय है और विभिन्न भाषाओँ में उनकी डबिंग की जा रही ही तो दूसरी ओर सीता के दृष्टिकोण से रचित एनिमेशन फिल्म ‘सीता सिंग्स द ब्ल्यूज़’ (2008) अमेरिका में रची जाकर रामत्व की विश्वयात्रा को नया आयाम देती देखी जा सकती है. 


लोक गायन की परंपरा से यह ज्ञात होता है कि वाल्मीकि द्वारा लेखबद्ध किए जाने से पहले ही राम और सीता की गाथा ऐतिहासिक वृत्ति की सीमाओं को लांघकर लोकगाथा और निजंधरी कथा का रूप धारण कर चुकी थी. तब से अब तक जब जब भी इसे लिखा गया, मंचित किया गया या किसी भी कला माध्यम द्वारा अंगीकृत किया गया तब तब इन नए पाठ रचने वालों ने मौलिक उद्भावनाओं के नाम पर इस कथा को कभी विकसित किया, तो कभी विकृत भी किया. लोकगाथा बन चुके चरित्रों और घटनाओं के साथ ऐसा होणा स्वाभाविक ही है क्योंकि जन-मन ऐसी गाथाओं की अपने मनोनुकूल व्याख्या और पुनर्रचना करने के लिए स्वतंत्र होता है. ‘सीता सिंग्स द ब्ल्यूज़’ पर भी यह बात लागू होती है. निर्देशक के अनुसार यह फिल्म सत्य और न्याय की गाथा के साथ-साथ समानता के अधिकार के लिए स्त्री की चीख भी है. इस कथन में रामकथा की वैश्विक प्रासंगिकता निहित है. 


‘सीता सिंग्स द ब्ल्यूज़’ एक एनिमेटड फिल्म है. इसके बारे में रोचक तथ्य यह है कि निर्माता-निर्देशक ने इसे सर्जनात्मक सामान्य लाइसेंस (क्रिएटिव कॉमन्स लाइसेंस) के अंतर्गत सर्वसुलभ कराया है. अर्थात यह फिल्म इस फिल्म को कोई भी देखने के साथ-साथ संपादित, परिवर्तित और परिवर्धित कर सकता है. हाँ, यह बात उन कुछ गीतों पर लागू नहीं है जिनका मूल कॉपीराइट किसी दूसरे के पास है. निर्देशक नीना पेले ने इस फिल्म को ‘लोक’ को अर्पित करते हुए अपनी वेबसाइट पर लिखा है, “मैं ‘सीता सिंग्स द ब्ल्यूज़’ आपको सौंप रही हूँ. वैसे तो सारी संस्कृति की तरह यह पहले से ही आपकी है, लेकिन मैं इसका विधिवत उल्लेख कर रही हूँ. आप इसे मुक्त रूप से वितरित करें, कॉपी करें, शेयर करें, सहेज कर रखें और प्रदर्शित करें. यह गाथा साझा संस्कृति की विरासत है और उसीको समर्पित है.” वे आगे स्पष्ट करती हैं कि ‘सीता सिंग्स द ब्ल्यूज़’ को कॉपी करने, साझा करने, प्रकाशित करने, सहेजने, प्रदर्शित करने, प्रसारित करने या रीमिक्स करने के लिए किसी प्रकार की अनुमति की आवश्यकता नहीं है. व्यावसायिक बुद्धि भले ही इस सब का मूल्य निर्धारित करने को कहती हो, लेकिन निर्माता की इच्छा यह है कि यह रचना हर उस व्यक्ति तक भी पहुँचे जो किसी भी प्रकार का भुगतान करने में असमर्थ है. उन्होंने अपने दर्शक पर, संस्कृति पर और स्वतंत्रता की भावना पर विशवास जताया है. इसे रामकथा को नए माध्यम द्वारा जन-जन तक पहुँचाने के लिए प्रौद्योगिकी के मुक्त/मुफ्त उपयोग का अच्छा उदहारण मानना चाहिए. 

फिल्मकार को इस बात का अंदाजा है कि जिस कहानी पर यह फिल्म बनाई जा रही है, उससे दर्शक पहले से किसी न किसी रूप में परिचित हैं. इसलिए उन्होंने चरित्रों को स्थापित करने या कथा के किसी एक विशिष्ट पाठ को प्रतिपादित करने के बजाय शुरू से ही इस बात पर ध्यान दिया है कि एन्नेटे हैंशा की आवाज में सीता की निजी अनुभूति की अभिव्यक्ति हो सके.

यह फिल्म चार कथात्मक इकाइयों में बँटी हुई है. पहली इकाई का संबंध आधुनिक कथा से है. यह कथा नीना पाले की है. नीना अपने पति और बिल्ली के साथ सैन फ्रांसिस्को में सुखपूर्वक रह रही है. तभी (2002) पति को भारत में नौकरी मिल जाती है और वह त्रिवेंद्रम चला जाता है. महीने भर में पति का बस एक फोन आता है. इस उपेक्षा से आजिज़ आकर वह भी पति के साथ रहने के लिए भारत आ जाती है. पति किसी प्रकार की प्रसन्नता नहीं दर्शाता और पत्नी के प्रति पूरी तरह उदासीन रहता है. इसी बीच अपनी कॉमिक फिल्म के सिलसिले में पत्नी को न्यूयॉर्क जाना पड़ता है. पीछे-पीछे पति के ईमेल के रूप में संबंध-विच्छेद की घोषणा आ जाती है. अपने खालीपन को भरने के लिए वह ‘रामायण’ पढ़ना शुरू करती है. दरअसल अमेरिका में रहने वाली नीना भारत आने पर ही रामकथा से परिचित हुई थीं. एन्नेटे हैंशा को सुनने के बाद उन्हें लगा कि सीता की और उनकी अपनी कहानी मैं कुछ ऐसी समानांतरता है जिसे किसी संगीत-रूपक का आधार बनाया जा सकता है. उन्होंने इस विषय को लेकर एक संगीत-वीडियो बनाने का निश्चय किया. फलस्वरूप, यह एनिमेशन फिल्म ‘सीता सिंग्स द ब्ल्यूज़’ अस्तित्व में आई.

इस कथावृत्त की दूसरी इकाई का संबंध सीधे-सीधे रामायण से है.यहाँ कथावाचक के रूप में हमारे सामने तीन छाया कठपुतलियाँ आती हैं. आप इन्हें भारतीय भी समझ सकते हैं औरचाहें तो इंडोनेशियन भी मान सकते हैं. इन छायापुतलियों के पास रामकथा की धुंधली-धुंधली यादें हैं जिनका निर्माण रामलीलाओं, टीवी सीरियलों और उन तमाम दूसरे-दूसरे पाठों के आधार पर हुआ है जिन्हें अलग-अलग माध्यमों में रामकथा के रूप में टुकड़े टुकड़े दास्तान की तरह अपनाया और पेश किया जाता है. एक खास बात इन तीनों छायापुतलियों की यह है कि ये पूरी तरह लोकतांत्रिक हैं. इन तीनों का अपना-अपना नजरिया है, मगर कट्टरता नहीं. तीनों को यह भली प्रकार मालूम है कि मेरे अलावा दूसरों का नजरिया भी ठीक हो सकता है. उन्हें कतई जरूरी नहीं लगता कि सबका सच एक जैसा हो. बल्कि वे यह मान कर चलती हैं कि हम तीनों ही सही हो सकती हैं. कहना न होगा कि यह बात शायद हिंदू जनजागृति समिति की समझ में नहीं आ सकी थी इसीलिए उन्होंने राम कथा पर आधारित और परंपरागत माध्यम के साथ-साथ आधुनिक प्रौद्योगिकी के सहारे नव मीडिया का उपयोग करते हुए रचे जा रहे रामचरित के नए पाठ को जन भावनाओं को ठेस पहुँचाने और तिरस्कार करने वाला मानकर इस पर प्रतिबंध की माँग (2009) की थी.

कथावृत्त की तीसरी इकाई के रूप में हमारे सामने सीधे-सीधे रामायण के विविध कांड आते हैं. इसके लिए फिल्मकार ने अठारहवीं शताब्दी की राजपूत पेंटिंग शैली का उपयोग किया है. दरअसल राजपूत पेंटिंग् शैली को महाकाव्य का चित्रांकन करने के लिए बहुत उपयोगी और उपयुक्त माना जाता है. पारंपरिक रूप से रामायण का चित्रांकन इस शैली में होता रहा है. आप जानते ही हैं कि राजपूत एक युद्धक जाति है और इसीलिए इस शैली में रामायण को एक ऐसे युद्ध-महाकाव्य के रूप में चित्रांकित किया जाता है जिसमें काव्यनायक युद्ध करता है और नायिका को पृथ्वी की भांति जीतने-हारने की ‘वस्तु’ माना जाता है; नायिका का हरण हो जाता है और नायक उसे खलनायक के चंगुल से निकालने के लिए भीषण युद्ध करता है, अपना नायकत्व स्थापित करता है.

इस कथावृत्त की चौथी इकाई का निर्माण सीता की आत्माभिव्यक्ति पर आधारित संगीतमय प्रस्तुति से हुआ है. यह सीता पुराणों वाली सीता नहीं है. या कहें कि मध्यकाल की सीता नहीं है. यह तो आज की वह सीता है जो राम की छाया और अनुगामिनी मात्र नहीं बल्कि ऐसी स्वतंत्र चेतना संपन्न स्त्री है जो अपने साथ किए जा रहे तमाम तरह के लैंगिक भेदभाव और वस्तुकरण की परंपरा की आलोचना कर सकती है; उस पर अपना निर्णय सुना सकती है, विरोध दर्ज करा सकती है. यह सीता जहाँ आनंद से परिपूर्ण है, वहाँ अपने आनंद को नृत्य के माध्यम से व्यक्त करती है और जहाँ पीड़ा और क्रोध से तपती है, वहाँ करुणा और उग्रता को भी छिपाती नहीं है. वह अपनी कारुणिक परिस्थितियों के प्रति पूरी तरह सचेत है और इस बात का भी उसे पूरा ख्याल है कि उसे इस विश्व की सर्वाधिक पवित्र स्त्री और सतीत्व के आदर्श के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है. इस एनिमेशन फिल्म की सीता बड़ी सीमा तक मैक्स फ्लीशर की एनिमेटेड कार्टून पात्र बेट्टी बूप के समान है जो अपनी कहानी खुद बयान करती है. यह कहानी नीना की कहानी के समानांतर चलती है जिन्होंने खुद अपनी कहानी के आधार पर इस एनिमेशन की रचना की है.

आधुनिक मीडिया और प्रौद्योगिकी की सहायता से रचित रामकथा के इस नए पाठ में जो बात सर्वाधिक आकर्षित करती है वह है सीता का सर्वथा नए संदर्भ में प्रतिष्ठापन. पारंपरिक सभी पाठों में सीता की महानता शूर्पणखा, अहल्या, ताड़का, कैकेयी और अन्य स्त्री पात्रों के बरक्स रची जाती रही है. लेकिन इस नए पाठ में सीता को पितृसत्तात्मक व्यवस्था के कारण अन्याय का शिकार होते हुए दिखाया गया है. इस कारुणिक दशा के बावजूद वह विलाप नहीं करती बल्कि अपने सम्मान का प्रश्न उपस्थित होने पर स्वाभिमान पूर्वक स्वयं राम का परित्याग कर देती है. यहाँ सीता महावृतांत का प्रस्तुतीकरण करने वाली छायापुतलियों के साथ एकाकार हो जाती है और दर्शकों को सावधान करती है कि किस तरह महान कथावृत्त रचे जाते रहे हैं और किस तरह उनकी पात्र परिकल्पना हमारे साधारणीकरण की प्रक्रिया को प्रभावित करती रही है. इस नए पाठ में राम-लक्ष्मण के चरित्र का प्रक्षालन किया गया है और शूर्पणखा के अंग-भंग की शर्मनाक घटना को छोड़ दिया गया है. यहाँ रावण बदले के लिए नहीं बल्कि शूर्पणखा के चालाकी भरे उकसावे में आकर सीता-हरण पर आमादा होता है. इसी प्रकार स्वर्ण-मृग पर सीता ही नहीं, स्वयं राम भी मुग्ध होते हैं और अपनी प्रिया को उपहार देने के लिए उसका शिकार करने निकलते हैं.

रामकथा का यह नया पाठ इस मामले में भी नया है कि फिल्मकार ने रावण को समस्त बुराइयों के प्रतीक के रूप में अंकित नहीं किया है. नीना के रावण में एक ही बुराई है और वह है कि उसने शूर्पणखा के उकसाने पर सीता का अपहरण किया वरना तो रावण एक महान विद्वान, तपस्वी और अपनी आँतों से वीणा बजा सकने वाला सिद्धहस्त संगीतकार है. इस फिल्म को देखकर दर्शक को लगता है कि रावण कोई मोगेंबो जैसा अपराधी चरित्र नहीं है बल्कि हमारे अपने पूर्वग्रहों ने उसकी वैसे खलनायक वाली छवि बना रखी है. लेकिन यह भी ध्यान आकर्षित करने वाला तथ्य है कि भले ही रावण ने कभी भी सीता का स्पर्श तक नकिया हो तो भी यहाँ उसकी इस कारण से कोई प्रशंसा नहीं की गई. स्त्री विमर्श की दृष्टि से तो रावण और राम दोनों ही सीता के वस्तुकरण के अपराधी हैं; एक ने उनका अपहरण किया तो दूसरे ने मिथ्या आरोप लगाकर निर्वासित किया.

विश्व भर के दर्शकों के लिए निर्मित किए गए रामकथा के इस पुनर्पाठ की केंद्रीय घटना सीता की अग्नि परीक्षा है. जब सीता को पता चलता है कि राम तो अपने क्षात्रधर्म का पालन करते हुए अपने पुरुष पुरुषत्व को प्रमाणित करने के लिए युद्ध कर रहे थे और उनके समक्ष सीता के लिए अपनी पवित्रता अग्निपरीक्षा द्वारा प्रमाणित करना आवश्यक था, तो वह अपमान की अग्नि से दहकने लगती हैं और अग्निपरीक्षा देकर अपनी पवित्रता प्रमाणित करती हैं. इसके बावजूद उन्हें किसी धोबी के कथन के बहाने धोखे से निर्वासित कर दिया जाता है. बाद में, फिर से पवित्रता का प्रमाण माँगा जाता है. ये दोनों ही अवसर स्त्रीत्व के चरम अपमान के अवसर हैं. इनसे जुडी सीता की मनोदशा को ‘एन्नेटे हैंशा’ की दर्दभरी आवाज में ‘मीन टू मी’ गीत में मर्मस्पर्शी अभिव्यंजना प्राप्त हुई है .यहाँ वेक्टर ग्राफिक एनीमेशन की अद्यतन तकनीक का प्रयोग प्रौद्योगिकी के रचनात्मक संयोजन का सुंदर उदाहरण है. इसके अलावा यह घटना नीना के अपने विवाह-विच्छेद की घटना के साथ बिंब-प्रतिबिंब भाव से इस तरह जोड़ दी गई है कि युगों पूर्व की सीता और आज की नीना एक साथ आकर दर्शक के सामने खड़ी हो जाती हैं. इस हृदय विदारक क्षण को रीना शाह ने अपने उग्र नृत्य द्वारा इस तरह साकार किया है कि तिरस्कृत, निर्वासित और परित्यक्त स्त्री की आंतरिक वेदना की आग दर्शक सहज ही महसूस कर पाता है. आश्चर्य नहीं कि रामकथा का यह स्त्री पाठ सीता द्वारा राम के परित्याग के रूप में अपने चरमोत्कर्ष को प्राप्त करता है. सीता राम को त्याग देती हैं और अपनी माता पृथ्वी की गोद में चली जाती हैं. इसके बाद एक स्वप्न दृश्य है जिसमें लिंगभेद जनित भूमिकाएँ बदल जाती हैं और भगवान विष्णु शेषशय्या पर विराजमान लक्ष्मी के पाँव दबाते नज़र आते हैं. 


निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि कंप्यूटर ग्राफिक्स और फ़्लैश एनीमेशन की अधुनातन प्रौद्योगिकी के सहारे निर्मित नीना पाले की यह फिल्म- 

- रामकथा में निहित स्त्री-पुरुष संबंधों के तनाव को सामने लाती है. (शायद ये तनाव ही परंपरागत सीता को छाया-सीता बनने के लिए मजबूर करते रहे हैं.) 
- रामकथा के लोकतांत्रिक चरित्र को उभारती है और ध्यान दिलाती है कि जन-जन द्वारा अंगीकार की गई इस गाथा को किसी एक जड़ फ्रेम में बाँधना इसकी हत्या करने जैसा है. (इस प्रकार यहाँ आधुनिक हठवादियों के आक्षेपों के औचित्य पर सवाल उठाया गया है.) 
- कथा सुनाने वाली तीन छायापुतलियों के बहाने सीता की पवित्रता के संबंध में अलग-अलग मत-वादों को सामने लाती है तथा नीना और सीता के बिंब-प्रतिबिंब भाव से अंकन द्वारा यह विश्वास दिलाने का प्रयास करती है कि एक स्वाभिमानी स्त्री के रूप में सीता ने पातिव्रत्य के प्रमाण की माँग के समय कैसा अनुभव किया होगा. 
- स्त्री-प्रश्नों के अलावा सत्य और न्याय के भी शाश्वत प्रश्नों पर सोचने के लिए अपने ग्लोबल दर्शक समुदाय को प्रेरित करती है और राम संस्कृति की विश्वयात्रा को आगे बढाती है.

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 http://blog.ninapaley.com/2013/01/18/ahimsa-sita-sings-the-blues-now-cc-0-public-domain/

Director Nina Paley's long synopsis from the press section at SitaSingstheBlues.com, retrieved May 4, 2008

https://openglam.org/2013/01/19/sitas-free-landmark-copyleft-animated-film-is-now-licensed-cc0/

Ekadashi, Chaitra Shuddha. Hindus, Strongly Protest against movie denigrating Devi Sita!Hindu Janajagruti Samiti. April 5, 2009

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· ऋषभदेव शर्मा, पूर्व प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद (तेलंगाना), भारत
 · कुमार लव, हेड, कस्टमर सक्सेस, सविशा, गोरेगाँव-पूर्व, मुंबई-400063 (महाराष्ट्र), भारत. 

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