स्व. अजंता की तेलुगु काव्यकृति 'स्वप्न लिपि' के हिंदी अनुवाद का लोकार्पण करते हुए प्रो. ऋषभदेव शर्मा . साथ में दाएँ अनुवादक प्रो. पी. आदेश्वर राव तथा बाएँ 'संकल्य' के संपादक प्रो. टी. मोहन सिंह. |
अजंता तेलुगु के उन विलक्षण कवियों में गिने जाते हैं जिन्हें प्रथम कविता के प्रकाशन से ही अलग पहचान मिल जाती है. १९२९ में जन्मे और १९९९ में मृत्यु को प्राप्त हो चुके अजंता को निधनोपरांत २००३ में साहित्य अकादेमी ने पुरस्कृत किया. कहीं अज्ञेय, कहीं मुक्तिबोध तो कहीं राजकमल चौधरी का स्मरण कराने वाले इस कवि के पुरस्कृत काव्य संकलन 'स्वप्न-लिपि' का हिंदी अनुवाद अभी तक प्रतीक्षित था. इस प्रतीक्षा से मुक्ति दिलाने का काम किया है प्रो. पी. आदेश्वर राव ने. शुक्रवार १३ अप्रैल २०१२ को पुस्तक आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी के सभागार में एक समारोह में इस पुस्तक को लोकार्पित करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ. यद्यपि प्रो. आदेश्वर राव का काव्य-भाषा-संस्कार छायावादी और तत्समीय है तथापि इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि उन्होंने एक अपेक्षाकृत कठिन कवि के अनुवाद का जोखिम उठाया है. मैं उनका अभिनंदन करता हूँ क्योंकि हिंदी पाठकों को उन्होंने एक लगभग अपरिचित हस्ताक्षर से परिचित कराया है.
इस अवसर पर दिए गए मेरे लोकार्पण-भाषण को सुपुत्र कुमार लव महोदय ने साउंड-क्लाउड पर सहेज दिया है जिस तक इस लिंक पर क्लिक करके पहुंचा जा सकता है -
4 टिप्पणियां:
बहुत बहुत बधाई ||
भावों का विस्तार, भाषाओं की सीमाओं के परे।
@रविकर फैजाबादी
@प्रवीण पाण्डेय
प्रोत्साहन हेतु आभार.
Hindi ka prachar prasar isee tarah hota rahe. Badhaee.
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