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रविवार, 13 जून 2010

सृजनात्मक लेखन पर डॉ. गोपाल शर्मा : पाठ २

स्वतंत्र वार्ता : १३/०६/२०१०

1 टिप्पणी:

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

डॉ. पाठक के ये आलेख बहुत सहज ढंग से लेखन हेतु ,मानसिकता के निर्माण एवं वांछित दिशा की ओर उन्मुख करने का सार्थक प्रयास सिद्ध होंगे .
'पाठ' 'पाठक' और 'पढ़ना' - उस सारी पृष्ठभूमि की संरचना के लिए जिसके बिना लेखन मात्र खोखला प्रयास रह जाएगा . इस तथ्य को बहुत सहजता से डॉ.शर्मा ने प्रस्तुत कर दिया है .लेखन की सारी पृष्ठभूमि ही उस चिन्तन पर आधारित होती है जो अनुभव (पढने का और प्रत्यक्ष जीवन के प्रति दृष्टि-बोध प्राप्त करने )पर निर्भर है .सुचिन्तित और सारगर्भित लेख के लिए डा. गोपाल शर्मा जी का अभिनन्दन और इसे लेखकों -भावी और उपस्थित- दोनों के लिए सुलभ कराने हेतु ,डॉ.ऋषभ देव जी का आभार .