स्वप्न, साधना और सिद्धि
"बीए_के_बाद_कलेक्टर" (2021/कानपुर: माया) डॉ. रामनिवास साहू (1954) का नया उपन्यास है। इससे पहले वे कई उपन्यासों के अतिरिक्त बहुखंडी आत्मकथा लिखकर पर्याप्त ख्याति अर्जित कर चुके हैं। उनकी लेखकीय छटपटाहट नित्य उन्हें नया कुछ रचने को बेचैन करती रहती है। इसी बेचैनी ने उन्हें कथा-लेखन की एक नई शैली खोजने की प्रेरणा दी। इस नई शैली का संबंध सोशल मीडिया से है। खासकर फेसबुक से। फेसबुक पर प्रतिदिन स्टेटस के रूप में छोटा सा ब्लॉग लिखने की जो सुविधा उपलब्ध है, उसे निरंतरता प्रदान करते हुए डॉ. साहू ने यह नया प्रयोग किया है। कोरोना-काल में घर में बैठे-बैठे उन्होंने प्रतिदिन एक-दो पृष्ठ के रूप में अपने जीवनानुभव को आत्मकथात्मक आख्यान का रूप देना शुरू किया और इस तरह 68 बैठकों में यह उपन्यास रच डाला।
डॉ. साहू केवल मनोरंजन के लिए नहीं लिखते हैं। वे सहित्य को व्यक्तित्व विकास और सामाजिक बदलाव का माध्यम मानते हैं। इसीलिए उनकी अन्य कृतियों की भाँति ही यह उपन्यास भी एक साधारण व्यक्ति के ऊँचे सपनों, निरंतर साधना और अंततः सिद्धि-प्राप्ति की गाथा है।
कहना न होगा कि यह साधारण व्यक्ति लेखक का अपना ग्रंथावतार है। इसीलिए लेखक की अपनी जन्मभूमि छत्तीसगढ़ इसकी मुख्य कथाभूमि है। खासकर कोरबा अंचल यहाँ अपने तमाम लोक-वैभव और विपन्न-वर्तमान के द्वंद्व सहित उपस्थित है। छत्तीसगढ़ के मन और जीवन की स्वानुभूत झाँकी प्रस्तुत करने के कारण यह उपन्यास और भी रोचक और पठनीय बन गया है।
शुभकामनाओं सहित,
#ऋषभदेवशर्मा
हैदराबाद
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