अवधेश कुमार सिन्हा (ज. 9 सितंबर, 1950) की 68वीं वर्षगाँठ पर उनकी शोधपूर्ण कृति "प्राचीन भारत में खेल-कूद (स्वरूप एवं महत्व)" (2018. हैदराबाद : मिलिंद प्र.) का प्रकाशन/लोकार्पण हैदराबाद के हिंदी जगत के लिए अत्यंत हर्षकारी है। अवधेश जी बहुज्ञ लेखक हैं। उनका वैज्ञानिक और तर्कपूर्ण दृष्टिकोण उन्हें सतत अनुसंधाता बनाता है। एक स्वतंत्र जिज्ञासु शोधार्थी के रूप में रचित उनकी यह कृति भारतीय इतिहास और संस्कृति विषयक उनकी गहन अंतर्दृष्टि का परिचायक है।
सिंधुघाटी सभ्यता और वैदिक काल से लेकर गुप्त काल तक भारतीय समाज और उसकी संस्कृति को मनोविनोद और खेलकूद के साधनों और प्रकारों के क्रमिक परिवर्तन और विकास के माध्यम से उकेरने वाला यह ग्रंथ हिंदी के साथ ही अन्य भारतीय भाषाओं के पाठकों तक भी पहुँचना चाहिए। आशा है, इसकी राष्ट्रीय उपादेयता को देखते हुए विभिन्न भाषाओं के अनुवादक इस ओर आकृष्ट होंगे।
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