भूमिका
इस पुस्तक में अलग-अलग रचनाकार की रचनाधर्मिता के समीक्षात्मक उद्घाटन के लिए जिस प्रारूप का इस्तेमाल किया गया है, वह सहज ही ध्यान आकृष्ट करता है. यह पुस्तक जहाँ एक ओर समीक्षित रचनाकारों के जीवन और कृतित्व की संक्षिप्त झांकी प्रस्तुत करने के बाद उनकी किसी एक चुनी गई कृति में प्रवेश करती है, वहीं प्रत्येक समीक्षक का भी संक्षेप में पाठक से साहित्यिक परिचय कराती है जो निश्चय ही इन नवांकुरों के लिए उत्साहवर्द्धक और प्रेरक सिद्ध होगा. इन समस्त परिचयों को चित्रों के सहारे दर्शनीयता भी प्रदान की गयी है जो सराहनीय है.
हिंदी में पुस्तक-समीक्षा की शुरूआत भारतेंदु युग से हुई. तब से अब तक इस विधा ने बहुत विकास कर लिया है. आज के समय में तो प्रकाशन व्यवसाय इतना बढ़ गया है कि उसकी तुलना में बहुत थोड़ी सी पुस्तकों की ही समीक्षा छप पाती है. ऐसे में हिंदी की मुख्यभूमि से दूर रहकर जो रचनाकार हिंदी में सृजनात्मक लेखन कर रहे हैं, प्रायः उनकी ओर तो पत्रिका-संपादकों और समीक्षकों की दृष्टि जाती ही नहीं है; और यदि जाती भी है तो केवल गिने-चुने शिखरों पर ही ठहरी रहती है. अतः इस नई और युवा समीक्षक पीढी से यह अपेक्षा रखना स्वाभाविक है कि इसके माध्यम से अधुनातन संचार साधनों द्वारा तमिलनाडु के हिंदी-स्वर देश भर में चर्चित होंगे.
यह देखकर प्रसन्नता होना स्वाभाविक है कि इस पुस्तक में चेन्नै के कई पीढ़ियों के रचनाकारों का मूल्यांकन एक साथ प्रस्तुत किया गया है. डॉ. बालशौरि रेड्डी , रमेश गुप्त नीरद, डॉ. निर्मला एस. मौर्य, डॉ. पी. के. बाल सुब्रह्मण्यम , डॉ. मधु धवन, डॉ. प्रदीप के. शर्मा, डॉ. चुन्नीलाल शर्मा, प्रहलाद श्रीमाली, डॉ. एम. शेषन, डॉ. वत्सला किरण, ईश्वर करुण, डॉ. श्रीनिवासन, डॉ. गोविंदराजन , सुमन अग्रवाल, गोविन्द मूंदडा , रेखा अग्रवाल की पुस्तक, महेश नक्श एवं डॉ. शरद रामदेव सिकची की पुस्तकों के बहाने इस पुस्तक में चेन्नै के बहुभाषाभाषी हिंदी साहित्यकारों की देन से पूरे हिंदी जगत को इस रूप में संभवतः प्रथम बार एक मंच पर परिचित होने का अवसर प्राप्त हो रहा है. अतः यदि यह कहा जाए कि यह अपने आप में एक अनुकरणीय आयोजन है, तो अतिशयोक्ति न होगी.
हिंदी भाषा और साहित्य के विकास को समर्पित इस दूरदर्शितापूर्ण सकारात्मक प्रयत्न में शामिल सभी रचनाधर्मी मित्रों को बधाई देते हुए इस योजना की निरंतरता के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएं!
- ऋषभदेव शर्मा
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