अपने हैदराबाद में यों तो कई साहित्यिक संस्थाएं हैं लेकिन साहित्य संगम इंटरनेशनल अपने चरित्र में बहुभाषी संस्था है. इसकी बैठकें सहअस्तित्ववादी टाइप की होती हैं - कोई चाहे तो फ़िल्मी गीत सुनाए, या अपनी पसंद का किसी अखबार का आर्टिकल ही पढ़ दे. कविताएँ तो होती ही हैं - हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, उर्दू, तेलुगु, मलयालम की कम से कम. व्यंग्य और समीक्षा भी. इन लोकतांत्रिक बैठकों का नाम बड़ा सटीक है - सबरस संगोष्ठी. यह बैठक हर महीने बिला नागा पहले शनिवार शाम ६ बजे शांताबाई नर्सिंग होम के सभाकक्ष में हुआ करती है - एबिड्स में होटल ताजमहल के सामने.
हाँ तो इस बार यह सबरस संगोष्ठी ५ मई को हुई. अध्यक्षता अपनेराम ने की - इस बहाने तेवरी सुनाने के अलावा संगोष्ठी पर टिप्पणी करने को आधा घंटा अतिरिक्त मिला भई! मुख्य अतिथि मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के प्रो. खालिद सईद थे - उन्होंने सुरेंदर प्रकाश की उर्दू कहानी 'बजूका' का पाठ किया. डॉ. जी. नीरजा को अपनी किताब ''तेलुगु साहित्य : एक अवलोकन'' के प्रोमोशन का मौका दिया गया. संदर्भवश उठी चर्चा में डॉ. एम. रंगय्या ने अवधान विधा का परिचय दिया.
और हाँ याद आया; संयोजिका एलिजाबेथ कुरियन मोना द्वारा हिंदी से अंग्रेजी में किए गए डॉ. राम सहाय बरय्या के काव्यानुवाद 'ट्रेमर्स' को लोकार्पित करने का मौका भी अपुन को मिला.
बाकी तो सबने अपने अपने रंग दिखाए ही, लेकिन वरिष्ठ कवयित्री विनीता शर्मा के गीत ने मन को बाँध लिया.
2 टिप्पणियां:
सबरस गोष्ठियाँ बहुत रोचक उपाय है साहित्यिक सामाजिकता का, सब अपने मन की कहें, सबके मन की सुने।
गीत आपको अच्छा लगा ,आभारी हूँ
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