tag:blogger.com,1999:blog-4143480273526923647.post4149053953605965925..comments2024-03-26T08:59:04.807+05:30Comments on ऋषभ उवाच: शिरसि मा लिख मा लिख मा लिखRISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09837959338958992329noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-4143480273526923647.post-2052321035136895642011-05-12T00:39:09.621+05:302011-05-12T00:39:09.621+05:30आदरणीय सर,
मुझे बहुत शिकायत है आपसे क्योंकि आपने ...आदरणीय सर, <br />मुझे बहुत शिकायत है आपसे क्योंकि आपने मुझे इस कार्यक्रम के बारे में बताया ही नहीं.पर आप कैसे बताते आप तो संयोजक नहीं थे. इसलिए संयोजक श्रीमती ज्योति नारायण जी से शिकायत है.<br /><br />अब उन्हें 'साहित्य मंथन' की भी एक गोष्ठी वहीं करनी चाहिए.डॉ.बी.बालाजीhttps://www.blogger.com/profile/10536461984358201013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4143480273526923647.post-53831545472392527272011-05-09T09:05:08.911+05:302011-05-09T09:05:08.911+05:30नमस्ते सर जी ,
अच्छा लगा आलेख पढ़कर.नमस्ते सर जी , <br />अच्छा लगा आलेख पढ़कर.शिवाhttps://www.blogger.com/profile/14464825742991036132noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4143480273526923647.post-14161148739319415142011-05-09T02:34:40.935+05:302011-05-09T02:34:40.935+05:30कुमार लव ने ईमेल लिखा है जो इस प्रकार है-
मैंने ...कुमार लव ने ईमेल लिखा है जो इस प्रकार है-<br /><br />मैंने आपकी ब्लॉग एंट्री पढ़ी.<br />और विचार आया कि ऐसी मीटिंग्स वर्कशाप जैसी होनी चाहिए - मिलने पर एक टोपिक हो , write a poem just then, and recite in some random order - maybe based on lottery. फिर लगा अगर टोपिक हो ''पेड़'' , तो मैं क्या लिखूंगा - और यह पोएम अपने आप लिखी गई - like the whole of this thinking happened in 3 minutes and poem was out.<br />odd?<br /><br />''शाम ढले<br />अचानक<br />तेज़ प्रकाश उठा<br />पूरब की ओर से.<br /><br />देखा<br />एक वृक्ष उग रहा था,<br />विशालकाय,<br />कई कई वर्षों का सफ़र<br />कुछ पलों में तय करता,<br />एक विशाल वृक्ष<br />चमकदार धुंए का.<br />देखते ही देखते विलीन हो गया<br />नीले आसमान में,<br />बस एक लकीर-सी छुट गई पीछे<br />काली लकीर - दरार पड़ी हो जैसे,<br />जैसे एक दूसरी दुनिया टकरा गई हो<br />मेरी इस दुनिया से,<br />और मौल गया हो आसमान.<br />कुछ चौड़ी हुई दरार<br />दांयाँ बाएं से छूट गया.<br />ओवरलैप ख़त्म.<br /><br />फिर,<br />तुम और मैं<br />तीर्थयात्रा छोड़<br />अपनी अपनी एल्बम देखने लगे<br />आँसुओं को को रोकते.''RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09837959338958992329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4143480273526923647.post-11227992328484850022011-05-09T02:25:08.836+05:302011-05-09T02:25:08.836+05:30१. सुमन जी,
आपने आलेख पसंद किया. आभारी हूँ.
२...१. सुमन जी,<br /> आपने आलेख पसंद किया. आभारी हूँ.<br /><br />२. प्रवीण पांडेय जी,<br /> सच बताऊँ...आजकल लिखते वक़्त आप अनिवार्य पाठक के रूप में मेरे समक्ष उपस्थित रहने लगे हैं. रही बात सुभाषित और अरसिकों के आमने-सामने की, तो बंधु मेरे! इस अनुभव की पीड़ा को भुक्तभोगी ही जानते हैं - 'को अपि समानधर्माः!'<br /><br />३. चमौप्र जी,<br /> न! 'बालियों वाली' तक बात पहुँची ही नहीं. मगर दूसरियाँ बहुत सारियाँ थीं. सबसे आप परिचित ही हैं. <br /> गोश जी ने भी कुछ नहीं पूछा क्योंकि वे वीडियो रिकार्डिंग में मशगूल थे - वैसे मुझे पूरा भरोसा है कि अपनी इस बालसुलभ चेष्टा में वे या तो सफल नहीं हुए होंगे या हडबडी में सब कुछ डिलीट कर चुके होंगे क्योंकि अब तक उन्होंने कुछ भी भेजा नहीं.<br /><br />४. डॉ. कविता जी,<br /> धोबन को तो संचालक लक्ष्मीनारायण जी ने पहले ही उपस्थित कर दिया था. खुशबू और बिच्छू के डंक से मैंने बात शुरू की तथा बाकी दोहे भूल जाने के कारण ओरेंज कलर वाली छोटी डायरी में घुस पडा. जब लगा कि ज्यादती हो रही है तो 'मैं तो इसके योग्य नहीं था' के साथ चुप्पी धार ली. न चूड़ियों का नंबर आया न लहरें आईं. वे यों भी उस डायरी में नहीं हैं...और याददाश्त धुंधली हो चली लगती है [शायद आर्थिक संकोचवश मन बुझा सा रहता है - लिखना नहीं चाहिए था पर इसमें छिपाने जैसा भी क्या है?]!RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09837959338958992329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4143480273526923647.post-18669631383205962132011-05-08T21:40:19.980+05:302011-05-08T21:40:19.980+05:30"सब चूड़ियों को भाग्य से मेरे ..." और..."सब चूड़ियों को भाग्य से मेरे ..." और<br /> "लहरों प' प्यार प्यार प्यार प्यार लिख रहा " <br />वाली भी इसी क्रम में आज याद आईं , वे भी संभवतः बाँटी हों.Kavita Vachaknaveehttps://www.blogger.com/profile/02037762229926074760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4143480273526923647.post-33371163332268841182011-05-07T21:29:50.076+05:302011-05-07T21:29:50.076+05:30हा हा हा... और वह धोबन वाली भी तो.... और ..और रानी...हा हा हा... और वह धोबन वाली भी तो.... और ..और रानी इतनी खुशबुएँ वाले क्रम के दोहे भी.Kavita Vachaknaveehttps://www.blogger.com/profile/02037762229926074760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4143480273526923647.post-60931575136033261592011-05-07T16:58:41.881+05:302011-05-07T16:58:41.881+05:30काव्य दिवस तो बड़ा भव्य दिवस भया॥ फ़ोटू से लगता तो...काव्य दिवस तो बड़ा भव्य दिवस भया॥ फ़ोटू से लगता तो ऐसा ही है। सोच रहा हूं कि आपने तो वो गेहूं की बालियां और कामिनी की बालियां वाली कविता सुनाई ही होगी और गोपाल शर्मा जी ने पूछा ही होगा कि यह कामिनी कौन है जी :)चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4143480273526923647.post-40823077022831911592011-05-07T13:09:50.687+05:302011-05-07T13:09:50.687+05:30लगभग 20 वर्ष पहले पढ़ा था यह, अब तक याद है, गाहे ब...लगभग 20 वर्ष पहले पढ़ा था यह, अब तक याद है, गाहे बगाहे अरसिकों को सुना भी देते हैं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4143480273526923647.post-44999243585999791222011-05-07T10:44:02.056+05:302011-05-07T10:44:02.056+05:30अच्छा लगा आलेख पढ़कर !अच्छा लगा आलेख पढ़कर !Sumanhttps://www.blogger.com/profile/02336964774907278426noreply@blogger.com