tag:blogger.com,1999:blog-4143480273526923647.post3566351485431289051..comments2024-03-26T08:59:04.807+05:30Comments on ऋषभ उवाच: ‘‘भाषा का संसार’’: कहि न जाय का कहिए!RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09837959338958992329noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-4143480273526923647.post-32008795346462791012009-09-07T11:52:37.290+05:302009-09-07T11:52:37.290+05:30प्रो. दिलीप सिंह की पुस्तक से परिचय कराने के लिए ध...प्रो. दिलीप सिंह की पुस्तक से परिचय कराने के लिए धन्यवाद।<br /><br />आपने लिखा है : <br /><br />"आजकल मीडिया की मिश्रित हिंदी को लेकर अनेक प्रकार की चिंताएँ व्यक्त की जाती हैं और यह निष्कर्ष दे दिया जाता है कि बाज़ार के दबाव के कारण मीडिया हिंदी की हत्या कर रहा है। इस संबंध में प्रो. दिलीप सिंह तटस्थतापूर्वक विचार करते हुए कहते है, ‘‘भाषा की शुद्धता का समर्थक वर्ग इसे हिंदी भाषा का अपमान और अवनति मानकर देख रहा है।"<br /><br />मैं इस संदर्भ में एक प्रश्न करना चाहूँगा। आजकल हिंदी में फ़्लैट्स, ब्लॉग्स आदि शब्दों का प्रयोग हो रहा है। कई विद्वानों का यह कहना है कि हिंदी में बहुवचन बनाने के लिए अंग्रेज़ी व्याकरण के नियमों का पालन करना गलत है। हिंदी में फ़्लैट, ब्लॉग आदि विदेशज शब्दों की श्रेणी में आते हैं, लेकिन मीडिया में अकसर इनका प्रयोग अंग्रेज़ी के शब्दों की तरह किया जाता है। वेबसाइट्स, ब्लॉग्स आदि शब्दों के प्रयोग पर आपकी क्या राय है?Suyash Suprabhhttps://www.blogger.com/profile/12615053893111270171noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4143480273526923647.post-48498797281080338332009-09-07T03:12:53.127+05:302009-09-07T03:12:53.127+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.Suyash Suprabhhttps://www.blogger.com/profile/12615053893111270171noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4143480273526923647.post-71670052563241094192009-09-05T18:55:31.763+05:302009-09-05T18:55:31.763+05:30==========================================
अनुना...========================================== <br />अनुनाद सिंह जी,<br />प्रो. दिलीप सिंह जी का संक्षिप्त जीवनवृत्त निम्नलिखित है :<br />================================================ <br /><br /><br />नाम : प्रो. दिलीप सिंह<br /><br />जन्म : आठ अगस्त, १९५१ वाराणसी में।<br /><br /><br />बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा एवं शोध कार्य। समाज भाषा विज्ञान में पीएच.डी.। हिन्दी भाषा के स्तर भेद तथा उसके शैलीय विकल्पनों के गम्भीर अध्येता। हिन्दी की क्षेत्रीय, सामाजिक, साहित्यिक तथा प्रयोजनमूलक शैली भेदों के विश्लेषक भाषाविद्।<br /><br />फ्रांस और अमरीका में हिन्दी शिक्षण।<br />केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा में कार्यानुभव। <br />उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के हैदराबाद तथा धारवाड़ केन्द्र में सहिया और भाषाविज्ञान शिक्षण एवं शोधनिर्देशन|<br /><br />लेखन: व्यावसायिक हिन्दी, समसामयिक हिन्दी कविता, शैली तत्व:सिद्धान्त और व्यवहार, अनुवाद : अवधारणा और अनुप्रयोग, साहित्येतर अनुवाद विमर्श ।<br />प्रो. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव के लेखों का सह-सम्पादन : हिन्दी भाषा का समाजशास्त्र, अनुप्रयुक्त भाषा विज्ञान, साहित्य का भाषिक चिन्तन।<br />साहित्यिक और साहित्येतर पाठ विश्लेषण पर व्यापक लेखन।<br />पाठ-आलोचना के सिद्धान्त और व्यवहार पर गहरी पकड़ रखने वाले भाषा-चिन्तक।<br /><br />सम्पर्क : <br />कुल सचिव, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, टी.नगर, चेन्नई - ६०० ०१७ [तमिलनाडु]ऋषभ उवाचhttp://rishabhuvach.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4143480273526923647.post-36807563723103439872009-09-05T13:02:52.064+05:302009-09-05T13:02:52.064+05:30समीक्षा बहुत अच्छी लगी।
प्रा. दिलिप सिंह जी की सं...समीक्षा बहुत अच्छी लगी।<br /><br />प्रा. दिलिप सिंह जी की संक्षिप्त जीवनी कहीं मिल सकती है?अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4143480273526923647.post-29785753930754497682009-09-04T22:01:03.741+05:302009-09-04T22:01:03.741+05:30"इस पुस्तक में भाषा, संप्रेषण और व्याकरण के ज..."इस पुस्तक में भाषा, संप्रेषण और व्याकरण के जटिल रिश्तों की गाँठें भी खोली गई है..."<br /><br />भाषा विज्ञान के किसी भी विद्यार्थी के लिए इन रिश्तों को जानना आवश्यक होता है। आशा है यह कृति भाषा के वैजानिक पक्ष को समझने में सहायक होगी।चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.com