tag:blogger.com,1999:blog-4143480273526923647.post2897475880081008354..comments2024-03-26T08:59:04.807+05:30Comments on ऋषभ उवाच: नश्वर बस्ती का सन्नाटा : 'कुछ संसद से'*RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09837959338958992329noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-4143480273526923647.post-59385450394168952222009-08-06T02:13:11.212+05:302009-08-06T02:13:11.212+05:30स्थितियाँ यथावत नहीं बदतर हैं, इसलिए आप जैसे इन्हे...स्थितियाँ यथावत नहीं बदतर हैं, इसलिए आप जैसे इन्हें पहचानने वालों की जिम्मेदारी और बढ़ गई है.ऋषभ उवाचhttp://rishabhuvach.blogspot.com/noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4143480273526923647.post-12867849258501425252009-08-05T19:30:32.443+05:302009-08-05T19:30:32.443+05:30"रोटी और कुर्सी के जिस द्वंद्व में हमारा लोकत..."रोटी और कुर्सी के जिस द्वंद्व में हमारा लोकतंत्र खो गया है ये कविताएँ उसे भी चीन्ह्ती हैं और आश्वस्त करती हैं कि अपने जुझारूपन के कारण कल आमआदमी अकेला नहीं रहेगा।" लेकिन लगभग २५ वर्ष बाद भी स्थिति यथावत बनी हुई है!!चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.com