फ़ॉलोअर

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

राजभाषा प्रबंध प्रशिक्षण

हैदराबाद, 23 जनवरी.
वे इस समय 73 वर्ष के हैं और एनएमडीसी के मुख्य राजभाषा प्रबंधक  के पद से अवकाश ग्रहण करने के दशक भर से अधिक पहले से प्रतिवर्ष ''अखिल भारतीय प्रबंध प्रशिक्षण कार्यक्रम'' आयोजित करते आ रहे हैं. ....आज भी पूरे जोश और स्फूर्ति के साथ. 

मेरा इशारा आदरणीय गोवर्धन ठाकुर की तरफ है. अभी उनका त्रिदिवसीय कार्यक्रम होटल वज्र में चल रहा है. दो दिन पहले ही फोन पर उनका फरमान आया  - वैज्ञानिक और तकनीकी लेखन की परंपरा पर बात करनी है आपको और यह स्पष्ट करना है कि इसमें राजभाषा हिंदी का प्रयोग कितना सरल और कितना लाभकारी हो सकता है. सो हुक्म बजा लाया गया. नब्बे मिनट के सत्र में रोचक बातचीत हुई. 

सत्र के बाद करीब नब्बे मिनट ही ठाकुर साहब से भी बातचीत हुई. बातचीत क्या बस वे सुनाते रहे और मैं हुंगारा देता रहा. यों तो वे सदा ही हाइपर एक्टिव जैसे रहते हैं पर इस बार खूब मस्त और प्रसन्न नज़र आए - रस ले ले कर अपने अमेरिका स्थित पोते की बाल लीलाओं का वर्णन कर रहे थे तो चेहरा और आँखें चमक चमक जाती थीं. वहाँ बर्फ गिरी तो स्काइप की कृपा से यहाँ इन्होंने उसका जीवंत दृश्य देख लिया! उनका यह बालपन मुझे बड़ा भाया.

खैर...बात थी प्रशिक्षण कार्यक्रम की. तो; हम दो के अलावा डॉ. राधेश्याम शुक्ल, मौ. कमालुद्दीन और ठाकुर विजय कुमार को भी मार्गदर्शन के लिए बुलाया गया है. प्रतिभागी दिल्ली, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और ओडिशा से आए हैं.

अहिल्या जी के प्रति कृतज्ञता सहित





हर महीने तीसरा रविवार कादम्बिनी क्लब-हैदराबाद  की बैठक के लिए होता है. संयोजिका डॉ. अहिल्या मिश्र इतने अधिकार से बुलाती हैं कि छुट्टी के दिन सोने की इच्छा के बावजूद आप इनकार नहीं कर सकते. गत रविवार 19 फ़रवरी को भी ऐसा ही हुआ और ग्यारह बजे से साढ़े तीन बजे तक उनके रहमोकरम पर गुज़ारने पड़े. खूब मज़े में. वैसे भी जब आप अध्यक्षता कर रहे हों तो बोलने का भरपूर मौका मिलता ही है. ऊपर से वसंत और होली से जुडी कविताएं! मुझे अहिल्या जी के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए.

सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

सेनानी कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान

सुभद्रा कुमारी चौहान कों समर्पित व्याख्यामाला में विशेषअतिथि के रूप में संबोधित
करते हुए प्रो. ऋषभ देव शर्मा . साथ में  संचालक डॉ. जी. नीरजा,
अध्यक्ष  प्रो. शुभदा वांजपे एवं मुख्य वक्ता डॉ. घनश्याम.
15 फ़रवरी को ''खूब लड़ी मरदानी वह तो झांसी वाली रानी थी'' की अमर रचनाकार  सुभद्रा कुमारी चौहान की पुण्यत्तिथि पड़ती है. इसीलिए  गत 16 फ़रवरी 2012 को आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद ने अपनी मासिक व्याख्यानमाला उनके नाम समर्पित की. विषय रहा - ''सुभद्रा कुमारी चौहान का रचना संसार''. 

मुख्य वक्ता डॉ. घनश्याम  ने विषय के साथ न्याय किया और स्वतंत्रता संघर्ष काल की सारी हिंदी कविता के संदर्भ में सुभद्रा जी को एक अपरिहार्य सेनानी कवयित्री के रूप में व्याख्यायित करने के अलावा उनकी कहानियों की यथार्थपरकता की ओर भी ध्यान दिलाया. डॉ.घनश्याम ने सुभद्रा जी की  समग्र रचनाओं को ओज, शृंगार और वात्सल्य के आधार पर बखूबी वर्गीकृत किया.

ऋषभदेव शर्मा ने विशेष अतिथि के रूप में बोलते हुए सुभद्रा जी के प्रसिद्ध गीत ''वीरों का कैसा हो वसंत'' में निहित उदात्त तत्व का विश्लेषण करते हुए उसके पाठ में संयोजित ओज और संप्रेषणीयता के गुणों पर विशेष चर्चा की.

अध्यक्षता डॉ. शुभदा वांजपे ने की . उन्होंने अनेक उदाहरण देते हुए कवयित्री को स्त्री-रचनाकार और स्त्रीवादी-रचनाकार के रूप में देखने पर बल दिया.

डॉ. पी. माणिक्यांबा, डॉ. एम रंगय्या और डॉ. जी. परमेश्वरन ने टिप्पणी करते हुए सुभद्रा  कुमारी चौहान की तुलना महादेवी वर्मा से तथा तेलुगु के उस दौर के रचनाकारों से करते हुए यह सवाल भी उठाया कि उस काल में तेलुगु क्षेत्र में वैसी कोई कवयित्री क्यों नहीं उभरी.

आरंभ में अकादमी के अनुसंधान अधिकारी डॉ. बी. सत्यनारायण और डॉ. पी. उज्ज्वला वाणी के नेतृत्व में  अतिथि सत्कार और  दीप प्रज्वलन  किया गया. 

संयोजन-संचालन डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने किया. अप्पल नायुडु ने धन्यवाद व्यक्त किया (और यहाँ दर्शित फोटो भी खींचे). यह घोषणा भी की गई कि अगले महीने की व्याख्यानमाला उर्दू कवि मुहम्मद इकबाल पर केंद्रित होगी.



रविवार, 19 फ़रवरी 2012

द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी ''भारतीय साहित्य : राम साहित्य से जुड़े कला संदर्भ'' संपन्न


मुंबई  के हमारे  मित्र  डॉ. प्रदीप कुमार सिंह धुन के बड़े पक्के हैं. पिछले साल 'राम साहित्य' पर एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी की थी उन्होंने साठये  कॉलेज में; तभी संकल्प किया एक और वैसी ही संगोष्ठी का. और अभी 10-11 फरवरी 2012 को उसे साकार भी कर डाला. अभिनंदन!


अयोध्या शोध संस्थान, संस्कृति मंत्रालय, उत्तर प्रदेश के सौजन्य से साठये कॉलेज, मुंबई में आयोजित  ''भारतीय साहित्य : राम साहित्य से जुड़े कला संदर्भ'' शीर्षक इस द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन संस्कार समूह के अध्यक्ष डॉ. कृष्ण कुमार पित्ती ने किया. विशेष अतिथि रहीं लिथुआनिया की क्रिस्टीना डोलोनीना. महाराष्ट्र भर के अनेक विद्वानों,  प्राध्यापकों और शोधार्थियों के अलावा अमृतसर, इलाहाबाद,चेन्नई, तिरुवनंतपुरम , अहमदाबाद, अयोध्या, लखनऊ, वाराणसी, शिमला, तिरुपति, उज्जैन, दिल्ली, धारवाड, मिजोरम, चंडीगढ़, रोहतक, खंडवा, सूरत, हजारीबाग, बरेली और हैदराबाद से आए विद्वानों-विदुषियों ने विषय के विविध आयामों को प्रकाशित किया. दक्षिण कोरिया के डॉ. को जोंग किम भी पधारे और रूस में हिंदी अधिकारी रह चुकीं डॉ.जोगेश कौर भी आईं.


अलग अलग सत्रों में जिन मुद्दों पर चर्चा की गई  उनमें शामिल रहे - भारतीय संस्कृति में राम, राम की कलाओं का अंतर्संबंध, भारतीय संस्कृति और राम साहित्य, भारतीय संस्कृति और चित्रकलाओं में राम साहित्य , भारतीय संस्कृति और मूर्ति व स्थापत्य कलाओं में राम साहित्य, भारतीय संस्कृति और नृत्य कलाओं में राम साहित्य, भारतीय संसृति और संगीत कलाओं में राम साहित्य, भारतीय संस्कृति और लोकनाट्य व रामलीला में राम, भारतीय कलाओं में रामचरित.


पहले दिन की सांझ नाटक, संगीत और नृत्य के नाम रही . खास तौर पर क्रिस्टीना डोलोनीना के कत्थक नृत्य और डॉ. मीनाक्षी के भरतनाट्यम ने मन मोह लिया. रामचरित संदर्भित विभिन्न भाषाओँ के लोकगीतों ने श्रोताओं कों द्रवित कर दिया तो मुजीब  खान के निर्देशन में आइडियल ड्रामा इंटरनेशनल एकाडेमी  की नाट्य प्रस्तुति 'प्रेमचंद की रामलीला' भी प्रेक्षकों  के लिए रोमांचकारी रही. 


अंत में यह कन्फेशन कि सयोजक के कहे अनुसार ''भारतीय चित्रकला में  राम'' पर अपुन ने जो परचा वहाँ पढ़ा   और प्रशंसा बटोरी, उसका पूरा पूरा श्रेय अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त कलाओं के मर्मज्ञ संग्राहक चित्रकार पद्मश्री जगदीश मित्तल जी को जाता है जिनसे  प्राप्त जानकारी और दिशानिर्देश के आधार पर ही वह परचा लिखा जा सका. 

और हाँ, जनाब प्रदीप जी ने सितंबर 2012 में एक और अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का संकल्प आज सवेरे ही फोन करके व्यक्त किया है, इस आदेश के साथ कि अभी से तैयारी शुरू कर दीजिए . मैंने  उनके जीवट को प्रणाम किया  और सलाह दी- भले आदमी, कुछ देर तो आराम कर लिया करो. उत्तर मिला- राम काज कीन्हे बिना मोहि कहाँ विश्राम!

शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

चार्टर्ड एकाउन्टेंट का अपना एकाउंट : 'आत्म मंथन' : लोकार्पित


'आत्म मंथन' हैदराबाद के प्रतिष्ठित व्यवसायी, चार्टर्ड एकाउन्टेंट और समाजसेवी लक्ष्मीनिवास शर्मा की आत्मकथा है. इस पुस्तक का विमोचन लेखक के 66 वें जन्मदिन पर 17  फ़रवरी 2012  को होटल एक्स्पोटेल में एक भव्य समारोह में संपन्न हुआ. व्यवसाय जगत की बड़ी हस्तियाँ जुटीं. लोकार्पण सीडीएसएल के अध्यक्ष एन. रंगाचारी ने किया और मुख्य अतिथि रहे कर्वे ग्रुप के अध्यक्ष सी. पार्थसारथी. पुस्तक समीक्षा की जिम्मेदारी अपुन ने निभाई.

300 पृष्ठ के आत्म मंथन में लेखक ने जहाँ अपनी 18 पीढ़ियों की वंशावली देते हुए अपने माता-पिता के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की है वहीं आने वाली पीढ़ियों को अपने स्वयं के इतिहास, परंपरा और संस्कृति की विरासत भी हस्तांतरित करने का सम्यक प्रयास किया है.सबसे अच्छी बात यह है कि क्राउन आकार की यह सजिल्द पुस्तक केवल निःशुल्क वितरण के लिए छापी गई है. 

शुभकामनाएँ!

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

रही भीलनी देखती बिखरे जूठे बेर


12 फरवरी 2012, रविवार.
आज डॉ. देवराज हैदराबाद आए. 
कुछ ही घंटे रुके. मुंबई से आए थे और विशाखापट्टनम जाना था.
सूचना पाते ही कई आत्मीय जन मिलने आ जुटे.
चार घंटे की अच्छी संगोष्ठी सी ही हो गई घर पर.
प्रो. एन. गोपि, डॉ. राधेश्याम शुक्ल, डॉ. रंगय्या, डॉ.जी. नीरजा दम्पति, डॉ.बी. बालाजी दम्पति, सीमा मिश्र दम्पति तो थे ही, द्वारका प्रसाद मायछ भी पत्नी और पुत्र के साथ आ धमके. 
इंटरव्यू, कविता पाठ और परिचर्चा .......खूब समां बंधा. संभव हुआ तो रिकॉर्डिंग कभी ज़रूर साझा करूँगा.
डॉ. एम वेंकटेश्वर जी नहीं आ सके......कहीं फँस गए थे.
अपने चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी भी कसमसाकर रह गए......तीन दिन से अस्वस्थ हैं.
पूनम [डॉ. देवराज जी डॉ. पूर्णिमा जी (श्रीमती ऋषभ) को इसी तरह बुलाते हैं] और मनी [बिटिया] को डॉ. देवराज के आने से अपार प्रसन्नता हुई. मनी के लेखन और फोटोग्राफी के काम को देखकर डॉ. साहब रोमांचित और गद्गद हो उठे. कढी और सूखी मटर का भी कई बार गुणगान किया.
और मैं.......मन ही मन बस कभी शायद आज ही के लिए कहा दोहा दुहराता रह गया .....
पाहुन तुम आए गए   रुके न थोड़ी देर 
रही भीलनी देखती      बिखरे जूठे बेर 


बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

सी सी एम बी में विज्ञान लेखन कार्यशाला संपन्न

हैदराबाद, ८ फ़रवरी, २०१२.

कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केन्द्र (सीसीएमबी) के प्रशासन भवन के समिति कक्ष में आज यहाँ ''हिंदी में विज्ञानं लेखन'' संबंधी कार्यशाला का आयोजन किया गया.  

विषय विशेषज्ञ के रूप में उपस्थित प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने ''विज्ञान लेखन में सहज एवं सरल हिंदी का प्रयोग'' विषयक सत्र कों संबोधित करते हुए कहा कि विज्ञान की  भाषा को अर्थ-सम्प्रेषण के स्तर पर सरल होना चाहिए क्योंकि उसमें तार्किकता होती. वैज्ञानिकों द्वारा भाषा की उपेक्षा और अनुवाद पर निर्भरता को जटिलता का कारण मानते हुए डॉ. ऋषभ ने कहा कि विज्ञानं -लेखन के लिए विषय ही नहीं बल्कि भाषा कों भी वैज्ञानिक अर्थात तर्कयुक्त होना चाहिए. उन्होंने प्राचीन भारत  में  विज्ञान-लेखन की परंपरा की चर्चा करते हुए बताया कि १२ वीं शताब्दी में भास्कराचार्य - द्वितीय ने अपने ग्रंथ 'सिद्धांत शिरोमणि' में वैज्ञानिक भाषा के लिए सुबोधता, सटीकता, व्याख्यात्मकता, स्पष्टता, गाम्भीर्य और सोदाहरणता जैसे गुणों का निर्धारण किया था जिसे  इस क्षेत्र में भारतीय विज्ञान का महत्वपूर्ण योगदान माना जाना चाहिए.

कार्यशाला के दूसरे सत्र में प्रो. एम वेंकटेश्वर ने ''पारिभाषिक शब्दावली'' पर व्याख्यान देते हुए कहा कि  विदेशी वैज्ञानिक शब्दों के हिंदी पर्यायों का चुनाव करते समय सरलता, अर्थ की परिशुद्धता और सुबोधता का विशेष ध्यान रखना चाहिए तथा सुधार्विरोधी व कट्टरवादी प्रवृत्तियों से बचना चाहिए. उन्होंने वैज्ञानिकों कों लिप्यन्तरण  और संक्षिप्तीकरण के स्तर पर भी एकरूपता और सरलता का ध्यान रखने की सलाह दी.

वरिष्ठ हिंदी अधिकारी आर. चंद्रशेखर के धन्यवाद-प्रस्ताव के साथ कार्यशाला का समापन हुआ.